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FA और शीत इकोडाकोडी सागत जानना चाहिए।
बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३४
१५५ सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति और इनका पन्द्रहसौ वर्ष का अबाधाकाल तथा अबाधाकाल से रहित शेष निषेकरचनाकाल है। इस पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम काल में अढाई कोडाकोडी सागरोपम को मिलाकर कुल साडेसत्रह कोडाकोडी सागरोपम काल कटुकरस और नीलवर्ण का उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण है। साड़े सत्रह सौ वर्ष अबाधाकाल और अबाधाकाल से हीन शेष काल निषेकरचनाकाल है । तिक्तरस, कृष्णवर्ण और गाथागत अधिक अर्थसूचक तु शब्द से दुरभिगंध, गुरु, कर्कश, रूक्ष और शीत इन चार स्पर्शों की पूर्वोक्त साड़े सत्रह कोडाकोडी सागरोपम में अढाई कोडाकोडी सागरोपम मिलाकर कुल बीस कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति जानना चाहिए । इनका दो हजार वर्ष का अबाधाकाल है और अबाधाकाल से हीन निषेकरचनाकाल है।
इस प्रकार से वर्णचतुष्क के अवान्तर भेदों की उत्कृष्ट स्थिति जानना चाहिए।
अब वेदनीय तथा ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीन घातिकर्मों की सभी उत्तरप्रकृतियों एवं मोहनीय व नामकर्म की कुछ प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति बताते हैं।
तीसं कोडाकोडी असाय-आवरण-अंतरायाणं । मिच्छे सयरी इत्थी मणुदुगसायाण पन्नरस ॥३४॥
१ कर्मप्रकृति एवं दिगम्बर कर्मसाहित्य में वर्णचतुष्क के अवान्तर भेदों की
उत्कृष्ट स्थिति पृथक्-पृथक् नामनिर्देश नहीं करके सामान्य से बीस कोडाकोडी सागरोपम बताई है। जिसका सम्भव कारण यह है कि बंधयोग्य मानी गई एक सौ बीस प्रकृतियों में वर्णचतुष्क को ग्रहण किया है। यहाँ जो विस्तार से अलग-अलग उल्लेख किया है, वह विशेषापेक्षा समझना चाहिए।
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