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पंचसंग्रह : ५ उत्तर प्रकृतियों को उत्कृष्ट स्थिति
सुक्किलसुरभिमहुराण दस उ तह सुभचउण्हफासाणं । अड्ढाइज्ज पवुड्ढी अंबिलहालिद्द पुव्वाणं ॥३३॥
शब्दार्थ-सुक्किलसुरभिमहुराण-शुक्लवर्ण, सुरभिगंध, मधुररस, दसदस कोडाकोडी, उ-अधिक अर्थसूचक अव्यय है, तह-तथा, सुभ-शुभ, च उण्ह-चार, फासाणं-स्पर्शों की, अड्ढाइज्ज-अढाई कोडाकोडी की, पुवुड्ढी-वृद्धि, अबिलहालिद्द-आम्लरस और हारिद्रवर्ण, पुव्वाणं-पूर्वक, सहित ।
गाथार्थ-शुक्लवर्ण, सुरभिगंध, मधुररस और चार शुभ स्पर्शों की दस कोडाकोडी सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति है तथा आम्लरस, हारिद्रवर्णादि की अढाई-अढाई कोडाकोडी सागरोपम की वृद्धि सहित उत्कृष्ट स्थिति है।
विशेषार्थ-गाथा में वर्णचतुष्क के अवान्तर भेदों की स्थिति का निर्देश किया है।
शुक्लवर्ण, सुरभिगंध, मधुररस तथा मृदु, लघु, स्निग्ध और उष्ण रूप चार शुभ स्पर्श, इन सात प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडो सागरोपम को है। इनका एक हजार वर्ष अबाधाकाल और अबाधाकाल हीन शेष निषेक रचनाकाल है।
आम्लरस और पीतवर्ण आदि रस और वर्ण की उत्कृष्ट स्थिति अनुक्रम से अढाई-अढाई कोडाकोडो सागरोपम अधिक जानना चाहिए । जिसका तात्पर्य इस प्रकार है कि आम्लरस और पीतवर्ण की उत्कृष्ट स्थिति साड़े बारह कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण तथा साड़े बारहसौ वर्ष का अबाधाकाल और अबाधाकाल से हीन शेष निषेकरचनाकाल है। इन साड़े बारह कोडाकोडो सागरोपमों में अढाई कोडाकोडी सागरोपम मिलाने पर कषायरस और रक्तवर्ण की पन्द्रह कोडाकोडी
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