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पंचसंग्रह : ५
शब्दार्थ - तीस-तीस, कोडाकोडी —— कोडाकोडी, असाय - आसातावेदनीय, आवरण अंतरायाणं- आवरणद्विक, ( जानावरण, दर्शनावरण) अन्तराय कर्म प्रकृतियों की, मिच्छे-मिथ्यात्व, सयरी -सत्तर, इत्थी - स्त्रीवेद, मणुदुगमनुष्यगतिद्विक, सायाण - सातावेदनीय की, पन्नरस - पन्द्रह को डाकोडी |
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गाथार्थ - असातावेदनीय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्म प्रकृतियों की तीस कोडाकोडी, मिथ्यात्व की सत्तर कोडाकोडी, स्त्रीवेद, मनुष्यगतिद्विक और सातावेदनीय की पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है |
विशेषार्थ - गाथा में समान समान स्थिति वाले तीन कर्मप्रकृति वर्गो की उत्कृष्ट स्थिति बतलाई है ।
पहला वर्ग है - आसातावेदनीय, ज्ञानावरणपंचक ( मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनपर्यायज्ञानावरण, केवलज्ञानावरण), दर्शनावरणनवक (निद्रा, निद्रा-निद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला, स्त्यानद्धि, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, केवलदर्शनावरण), अंतरायपंचक (दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, ( उपभोगान्तराय, वीर्यान्तराय), कुल बीस प्रकृतियों का । इन बीस प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति अपने मूलकर्म के बराबर तीस कोडाकोडी- तीस कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण है । इनका तीन-तीन हजार वर्ष अबाधाकाल और अबाधाकाल से हीन शेष निषेकरचनाकाल है ।
दूसरे वर्ग में सिर्फ एक मिथ्यात्वमोहनीय प्रकृति है । इसकी सत्तर कोडाकोडी सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति है और सात हजार वर्ष का अबाधाकाल और अबाधाकाल से हीन शेष कर्मदलिकों की निषेकरचना का काल है !
तीसरे वर्ग में गृहीत स्त्रीवेद, मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी और सातावेदनीय इन चार प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति पन्द्रह कोडाकोडी साग
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