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पंचसग्रह : ५ शब्दार्थ-मोत्तु मकसाई-अकषायी को छोड़कर, तणुया-जीवों को, ठिइ-स्थिति, वेयणीयस्स-वेदनीय की, बारस-बारह, मुहुत्ता-मुहूर्त, अट्ठट्ठ-आठ-आठ, नामगोयाण-नाम और गोत्र की, सेसयाणं-शेष कर्मों की, मुहुत्त तो-अन्त मुहूर्त ।
गाथार्थ-अकषायी जीवों को छोड़कर वेदनीयकर्म की जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त की है । नाम और गोत्र की आठ मुहूर्त और शेष कर्मों की अन्तर्मुहूर्त स्थिति है। विशेषार्थ-गाथा में ज्ञानावरण आदि आठों मूल कर्मों की जघन्य स्थिति बतलाई है। जिसका प्रारम्भ किया है वेदनीयकर्म से कि उसकी जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त की है। वेदनीयकर्म की जघन्य स्थिति के प्रसंग में यह जानने योग्य है कि वेदनीयकर्म की स्थिति दो प्रकार की है-१ सकषायी जीवों को दसवें गुणस्थान के अन्त में कम से कम बंधने वाली और २ अकषायी जीवों को ग्यारहवें से लेकर तेरहवें गुणस्थान पर्यन्त दो समय प्रमाण बंधने वाली । यहाँ अकषायी जीवों की स्थिति की विवक्षा नहीं की है। इसीलिए उस स्थिति को छोड़कर शेष सकषायी जीवों के वेदनीय की जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त प्रमाण बंधती है यह संकेत किया है और उसका अन्तर्मुहूर्त प्रमाण अबाधाकाल है और अबाधाकाल से हीन कर्मदलिकों की निषेकरचना का काल है।
उक्त कथन का तात्पर्य यह है कि स्थितिबंध का मुख्य कारण कषाय है और कषाय का उदय दसवें सूक्ष्मसम्परायगुणस्थान तक ही
___ ग्यारहवें आदि गुणस्थान में बंधने वाली वेदनीयकर्म की दो समय प्रमाण स्थिति को जघन्य स्थिति के रूप में ग्रहण न करने का कारण यह है कि कषायरूप हेतु के बिना बंधने वाली स्थिति में रस नहीं होने से उसका कुछ भी फल अनुभव में नहीं आता है। किन्तु अल्पाधिक कषाय के निमित्त से बंधने वाले कर्म का फल अनुभव होता है।
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