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बंधविधि->
- प्ररूपणा अधिकार : गाथा २१, २२
१२.३
इसी गुणस्थान में हास्यादिषट्क का प्रक्षेप करने पर एक सौ सात, एक सौ आठ, एक सौ ग्यारह और एक सौ बारह प्रकृतिक इस प्रकार चार सत्तास्थान होते हैं ।
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तत्पश्चात् स्त्रीवेद का प्रक्षेप करने पर एक सौ आठ, एक सौ नौ, एक सौ बारह और एक सौ तेरह प्रकृतिक इस तरह चार सत्तास्थान
होते हैं ।
तदनन्तर इसी गुणस्थान में नपुंसकवेद का प्रक्षेप करने पर एक सौ नो, एक सौ दस, एक सौ तेरह और एक सौ चौदह प्रकृतिक ये चार सत्तास्थान होते हैं । तथा
इन्हीं चार सत्तास्थानों में इसी गुणस्थान में नरकद्विकादि नामकर्म की तेरह प्रकृतियों और स्त्यानद्धित्रिक, कुल सोलह प्रकृतियों का प्रक्षेप करने पर एक सौ पच्चीस, एक सौ छब्बीस, एक सौ उनतीस और एक सौ तीस प्रकृतिक ये चार सत्तास्थान होते हैं ।
तत्पश्चात् इसी गुणस्थान में अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क और प्रत्याख्यानावरणचतुष्क इन आठ कषायों का प्रक्षेप करने पर एक सौ तेतीस, एक सौ चौंतीस, एक सौ सैंतीस और एक सौ अड़तीस प्रकृतिक ये चार सत्तास्थान होते हैं । ये सभी सत्तास्थान नौवें गुणस्थान में होते हैं ।
पूर्व के क्षीणमोहगुणस्थान सम्बन्धी छियानवे, सत्तानवे, सौ और एक सौ एकप्रकृति वाले चार सत्तास्थानों में मोहनीय की बाईस, स्त्यानfafe और नामत्रयोदशक प्रकृतियों का प्रक्षेप करने पर एक सौ
१ स्थावरद्विक, तिर्यंचद्विक, नरकद्विक, आतपद्विक, एकेन्द्रियादि जातिचतुष्क और साधारण नाम, ये तेरह प्रकृतियां नामत्रयोदश के रूप उल्लिखित की जाती हैं । यहाँ तथा आगे जहाँ भी नापत्रयोदश का संकेत किया जाये. वहाँ नामकर्म की इन तेरह प्रकृतियों को ग्रहण करना चाहिए ।
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