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पंचसंग्रह : ५
चौंतीस, एक सौ पैंतीस, एक सौ अड़तीस और एक सौ उनतालीस प्रकृतिक चार सत्तास्थान होते हैं । इनमें नौवें गुणस्थान के अन्तिम चार सत्तास्थानों की मोहनीयकर्म की बारह कषाय और नव नोकषायों के साथ सम्यक्त्वमोहनीय अधिक ली है ।
जिस क्रम से प्रकृतियों का क्षय किया जाता है, उससे विपरीत पश्चानुपूर्वी के क्रम से प्रकृतियों का प्रक्षेप करने पर उपर्युक्त सत्तास्थान होते हैं ।
पूर्वोक्त क्षीणकषाय सम्बन्धी छियानवे आदि चार सत्तास्थानों में मिश्रमोहनीय सहित मोहनीय को तेईस, नामत्रयोदश और स्त्यानद्वित्रिक का प्रक्षेप करने पर एक सौ पैंतीस एक सौ छत्तीस, एक सौ उनतालीस और एक सौ चालीस प्रकृत्यात्मक ये चार सत्तास्थान होते हैं । तथा
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उन छियानवे आदि चार स्थानों में मिथ्यात्वमोहनीय के साथ मोहनीय की चौबीस, नामत्रयोदश और स्त्यानद्धित्रिक का प्रक्षेप करने पर एक सौ छत्तीस, एक सौ सैंतीस, एक सौ चालीस और एक सौ इकतालीस प्रकृतिक ये चार सत्तास्थान होते हैं । तथा
उन्हीं छियानवे प्रकृतिक आदि चार सत्तास्थानों में मोहनीय की छब्बीस, स्त्यानद्धत्रिक और नामत्रयोदश का प्रक्षेप करने पर एक सौ अड़तीस एक सौ उनतालीस, एक सौ बयालीस और एक सौ तेतालीस प्रकृतिक चार सत्तास्थान होते हैं। तथा
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उन्हीं छियानवे प्रकृतिक आदि चार सत्तास्थानों में मोहनीय की सत्ताईस, नामत्रयोदश और स्त्यानद्धित्रिक का प्रक्षेप करने पर एक सौ उनतालीस, एक सौ चालीस एक सौ तेतालीस और एक सौ चवालीस प्रकृति वाले चार सत्तास्थान होते हैं । तथा
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उन्हीं छियानवे आदि प्रकृतिक चार सत्तास्यानों में मोहनीय की अट्ठाईस, स्त्यानद्धित्रिक और नामत्रयोदश का प्रक्षेप करने पर एक
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