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पंचसंग्रह : ५ यहाँ ऊपर के गुणस्थान से पतन नहीं होने के कारण एक भी भूयस्कार नहीं होता है तथा क्षीणमोहगुणस्थान के चरमसमयवर्ती चौरानवे
और अट्ठानवै प्रकृतिक सत्तास्थान से अस्सी और चौरासी के सत्तास्थान में जाने से और पंचानवै तथा निन्यानवै के सत्तास्थान से इक्यासी और पचासी के सत्तास्थान में जाने से अस्सी, चौरासी एवं इक्यासी, पचासी के सत्तारूप चार अल्पतर होते हैं। इसी प्रकार छियानवे एव सौ के सत्तास्थान से चौरानवै और अट्ठानवै के सत्तास्थान में जाने से तथा सत्तानवै एवं एक सौ एक के सत्तास्थान से पंचानव और निन्यानवै के सत्तास्थान में जाने से चौरानवै, अट्ठानवै, और पंचानवे, निन्यानवै के सत्तारूप चार अल्पतरसत्कर्म होते हैं।
पूर्वोक्त छियानवै आदि चार सत्तास्थानों में संज्वलन लोभ का प्रक्षेप करने पर सत्तानवै, अट्ठानवै, एक सौ एक और एक सौ दो प्रकृतिक रूप चार सत्तास्थान होते हैं । ये सत्तास्थान दसवें सूक्ष्मसम्परायगुणस्थान में होते हैं।
तत्पश्चात् इन्हीं चार में संज्वलन माया के मिलाने पर अट्ठानवे, निन्यानवै, एक सौ दो और एक सौ तीन प्रकृतिक ये चार सत्तास्थान होते हैं। ये सत्तास्थान अनिवृत्तिबादरसम्पराय नामक नौवै गुणस्थान के अन्त में होते हैं।
तथा इसी गूणस्थान में संज्वलन मान का प्रक्षेप करने पर निन्यानवै, सौ, एक सौ तीन और एक सौ चार प्रकृत्यात्मक चार सत्तास्थान होते हैं। तथा
इन्हीं चार सत्तास्थानों में संज्वलन क्रोध का प्रक्षेप करने पर क्रमशः सौ, एक सौ एक, एक सौ चार और एक सौ पांच प्रकृतिक रूप चार सत्तास्थान होते हैं । तथा____ इसी गुणस्थान में पुरुषवेद का प्रक्षेप करने पर एक सौ एक, एक सौ दो, एक सौ पांच और एक सौ छह प्रकृतिक इस तरह चार सत्तास्थान होते हैं । तथा
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