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पंचसंग्रह : ५
___ अब जब केवलज्ञान उत्पन्न हो और सयोगिकेवलीगुणस्थान को प्राप्त करे तब तीर्थंकर होने वाला तीर्थकरनामकर्म का उदय होने से चौंतीस का उदयस्थान प्राप्त करता है । जिससे चौंतीस का उदयस्थान भूयस्कार रूप ही घट सकता है, किन्तु चौंतीस से आगे पैंतीस प्रकृतिक उदयस्थान नहीं होने से वह अल्पतर रूप में घटित नहीं होता है। इसीलिए चौंतीस के अल्पतर का निषेध किया है।
इस प्रकार उनसठ और चौंतीस प्रकृतिक उदयस्थान अल्पतर रूप न होने से चौबीस अल्पतरोदय माने जाते हैं। जिनका संक्षेप में विवरण इस प्रकार हैं
छब्बीस उदयस्थानों में केवली सम्बन्धी नौ उदयस्थानों और अविरत के उनसठ से चवालीस प्रकृतिक तक के सोलह उदयस्थानों में पश्चानुपूर्वी के क्रम से प्रकृतियों को कम करने पर पन्द्रह अल्पतर होते हैं। जैसे कि अट्ठावन प्रकृति के उदय में से निद्रा, भय और जुगुप्सा में से किसी एक प्रकृति को कम करने पर सत्तावन का, कोई भी दो कम करने पर छप्पन का और तीनों को कम करने पर पचपन का उदयस्थान होता है । इसी प्रकार अन्यत्र भी समझ लेना चाहिये।
यहाँ बताये गये अल्पतर और पूर्व में बताये गये भूयस्कार उदयों में से प्रत्येक अनेक प्रकार से हो सकते हैं, परन्तु अवधि मर्यादा के कारण उन भूयस्कारादि के भेदों की गणना न किये जाने से उनकी उतनी ही संख्या होती है और चवालीस का उदय विग्रहगति में वर्तमान क्षायिक सम्यक्त्वी के होता है और उसमें भय आदि को मिलाने पर अन्तिम सैंतालीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है तथा अड़तालीस का उदय भवस्थ के होता है । जिससे अड़तालीस के उदय से सैंतालीस के उदय में नहीं जाया जाता है । अतः उसकी अपेक्षा तो यह प्रतीत होता कि अल्पतर घटित नहीं हो किन्तु छियालीस के उदय वाले मिथ्यादृष्टि के भय, जुगुप्सा बढ़ाने पर अड़तालीस का उदयस्थान होता है और
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