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पंचसंग्रह : ५
परन्तु शेष इक्कीस उदयस्थान भूयस्कारोदय रूप संभव हैं । इसीलिये state भूयस्कारोदय माने जाते हैं। वे इक्कीस भूयस्कारोदय इस प्रकार जानना चाहिए
छब्बीस उदयस्थानों में केवली के उदयस्थान सम्बन्धी छह तथा अविरत के चवालीस से अट्ठावन तक के पन्द्रह उदयस्थानों में जिस क्रम से उदय में प्रकृतियों की वृद्धि पूर्व में बतलाई है, उस क्रम से वृद्धि करने पर अट्ठावन तक चौदह और अन्तिम उनसठ प्रकृतिक उदयस्थान अर्थात् पैंतालीस प्रकृतिक से लेकर उनसठ प्रकृतिकपर्यन्त पन्द्रह, इस तरह कुल मिलाकर (६+१५= २१ ) इक्कीस भूयस्कारोदय होते हैं ।
इस प्रकार से इक्कीस भूयस्कारोदय होने के कारण को स्पष्ट करने के बाद अब चौबीस अल्पतरोदय होने के कारण को स्पष्ट करते हैं
'जन्नेइ अजओ य केवलित्तं' अर्थात् अविरत सम्यग्दृष्टि अथवा मिथ्यादृष्टि केवली भगवान के उदयस्थानों को प्राप्त नहीं करते हैं । इस कारण केवलीप्रायोग्य चौंतीस प्रकृतिक उदयस्थान अविरत और मिथ्यादृष्टि में घटित नहीं होने से चौंतीस का उदय रूप स्थान अल्पतरोदय नहीं होता है तथा उनसठ के उदयस्थान से यदि कोई और दूसरा अधिक संख्या वाला उदयस्थान होता तो उसमें इस उनसठ प्रकृतिक उदयस्थान के संक्रांत होने पर वह अल्पतरोदय माना जा सकता था, किन्तु उससे अधिक संख्या वाला कोई उदयस्थान नहीं है । जिससे वह भी अल्पतर नहीं होता है। इस प्रकार चौंतीस और उनसठ प्रकृतिक ये दो उदयस्थान अल्पतर रूप न होने से शेष चौबीस ही अल्पतरोदय होते हैं ।
प्रश्न - चौंतीस का उदयस्थान स्वभावस्थ तीर्थंकर केवली के होता है । इसलिए जब तीर्थंकर होने वाला जीव केवली अवस्था को प्राप्त करता है और वह चवालीस आदि किसी भी उदयस्थान से चौंतीस के
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