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________________ विधि - प्ररूपणा अधिकार : गाथा २० १०७ के तथा अविरति केवली के उदयस्थानों को तथा इसी प्रकार तीर्थंकर सामान्य केवली के और सामान्य केवली तीर्थंकर के उदय• स्थानों को प्राप्त नहीं करते हैं । विशेषार्थ - गाथा में पूर्वोक्त छब्बीस उदयस्थानों में इक्कीस भूयस्कारोदय और चौबीस अल्पतरोदय मानने के कारण को स्पष्ट किया है— केवली भगवान छद्मस्थ के उदयस्थानों को प्राप्त नहीं करते हैं'जन्नेइ केवली छउमं' और अविरतसम्यग्दृष्टि केवलज्ञानी के उदयस्थान में जाते नहीं 'अजओ य केवलित्त ।' यदि अविरति केवलित्व प्राप्त करते तो चवालीस प्रकृतिक उदयस्थान भूयस्कार रूप में हो सकता था और वैसा होने पर उनकी संख्या बढ़ सकती थी, परन्तु वैसा नहीं होने से भूयस्कारों की संख्या में वृद्धि नहीं होती है। इसके साथ दूसरा कारण यह है अतीर्थंकर तीर्थंकर के उदयस्थानों को और अयोगिकेवली सयोगिकेवली के उदयस्थानों को प्राप्त नहीं करते हैं- 'जन्नेइ तित्थयरियरा व अन्नोनं ।' जिससे ग्यारह बारह, तेईस, चौबीस और चवालीस प्रकृतिक ये पांच उदयस्थान भूयस्कारोदय रूप से संभव नहीं हैं । 2 १ उक्त कथन का तात्पर्य यह है कि ग्यारह, बारह, तेईस, चौबीस और चवालीस के बिना शेष इक्कीस भूयस्कारोदय होते हैं । कारण यह है कि तीर्थंकर और सामान्य केवली के क्रमशः अयोगिगुणस्थान में मनुष्यगति आदि बारह और ग्यारह का और सयोगिगुणस्थान में केवलिसमुद्घात में काकाययोग में वर्तमान तीर्थंकर केवली और सामान्य केवली आत्मा के अनुक्रम से ध्रुवोदया बारह प्रकृतियों युक्त चौबीस और तेईस प्रकृतियों का उदय होता है तथा चवालीस का उदयस्थान अविरत क्षायिक सम्यग्दृष्टि के विग्रहगति में घटित होता है । ये पांचों उदयस्थान प्रकृतियों की हानि से ही प्राप्त होते हैं किन्तु वृद्धि से नहीं, जिससे ये पांचों उदयस्थान भूयस्कार रूप में सम्भव नहीं हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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