________________
पचसंग्रह : ५
इन उदयस्थानों में अवक्तव्योदय घटित नहीं होता है। क्योंकि सभी प्रकृतियों का उदयविच्छेद होने के बाद पुनः उनका उदय सम्भव नहीं है और अवस्थितोदय जितने उदयस्थान हों उतने ही होते हैं, ऐसा नियम होने से अवस्थितोदय छब्बीस हैं।
प्रश्न-विग्रहगति और समुद्घात अवस्था में जो उदयस्थान होते हैं, उनमें अवस्थितोदय कैसे सम्भव है ? उनका समय अत्यल्प है ?
उत्तर-विग्रहगति और समुद्घात अवस्था में जो उदयस्थान होते हैं, तो उस स्थिति में भी दो, तीन समय अवस्थान होता है । इसीलिए उनमें भी अवस्थितोदय माना जाता है। जिस समय अल्पाधिकता हो, उस समय भूयस्कार या अल्पतरोदय होता है और उसके बाद के समय में यदि वही का वही उदय रहे तो वह अवस्थितोदय कहलाता है। समुद्घात या विग्रहगति के उदयस्थान यदि एक ही समय के रहते हों तो उपर्युक्त शंका योग्य हो सकती थी। परन्तु वे उदयस्थान तो दो या तीन समय रह सकते हैं। जिससे अवस्थितोदय छब्बीस सम्भव हैं।
इन छब्बीस उदयस्थानों में भूयस्कारोदय इक्कीस और अल्पतरोदय चौबीस होते हैं। जिनका कारण सहित स्पष्टीकरण इस प्रकार है
भूयप्पयरा इगिचउवीसं जन्नेइ केवली छउमं । अजओ य केवलित्तं तित्थयरियरा व अन्नोन्नं ॥२०॥ शब्दार्थ-भूयप्पयरा-भूयस्कार और अल्पतर, इगिचउवीसं-इक्कीस और चौबीस, जन्नेइ-क्योंकि प्राप्त नहीं करते हैं, केवली-केवली भगवान, छउमं-छद्मस्थ उदयस्थानों को, अजओ-अविरत, य-और, केवलितंकेवलीपने को, तित्थयरियरा-तीर्थंकर और इतर-सामान्य केवली, व-और, अन्नोन्नं-परस्पर एक दूसरे के उदयस्थानों को।
गाथार्थ- पूर्वोक्त छब्बीस उदयस्थानों में भूयस्कार और अल्पतर अनुक्रम से इक्कीस और चौबीस होते हैं। क्योंकि केवली छद्मस्थ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org