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________________ बंधविधि प्ररूपणा अधिकार : गाथा १६ १०३ निद्रा इन तीन में से एक-एक को मिलाने पर पचास, दो-दो को मिलाने पर इक्यावन और तीनों को मिलाने पर बावन प्रकृतियों का उदयस्थान होता है । तथा पूर्वोक्त उनचास प्रकृतियों में शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त के पराघात का उदय बढ़ाने पर पचास का उदय होता है । उसमें भय, जुगुप्सा और निद्रा इन तीन में से एक-एक के मिलाने पर इक्यावन, दो-दो के मिलाने पर बावन और तीनों के मिलाने पर त्रेपन प्रकृतिक उदयस्थान होते हैं । तथा पूर्वोक्त पचास में उच्छवासपर्याप्ति से पर्याप्त के श्वासोच्छवास के उदय को बढ़ाने पर इक्यावन का उदय होता है । उसमें भय, जुगुप्सा और निद्रा में से कोई एक बढ़ाने पर बावन, दो-दो के मिलाने पर त्रेपन और तीनों के मिलाने पर चौपन प्रकृतिक उदयस्थान होता है । तथा पूर्वोक्त इक्यावन में उद्योत अथवा आतप का उदय बढ़ाने पर बावन का उदय होता है । उसमें भय, जुगुप्सा अथवा निद्रा में से एकएक को मिलाने पर त्रेपन, दो-दो को मिलाने पर चौपन और तीनों को मिलाने पर पचपन प्रकृतिक उदयस्थान होता है । तथा भवस्थ द्वीन्द्रियादि के भवस्थ एकेन्द्रिय के उदययोग्य चौबीस में अंगोपांग और संहनन को मिलाने पर नामकर्म की छब्बीस और शेष सात कर्म की पच्चीस कुल मिलाकर इक्यावन प्रकृतियों का उदय होता है । उनमें भय, जुगुप्सा और निद्रा में से कोई एक मिलाने पर बावन, दो-दो के मिलाने पर त्रेपन और तीनों के मिलाने पर चौपन प्रकृतियों का उदयस्थान है । तथा -- शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त उन द्वीन्द्रिय आदि के पूर्वोक्त इक्यावन प्रकृतियों में पराघात और विहायोगति के मिलाने पर त्रेपन का उदय होता है । उनमें भय, जुगुप्सा और निद्रा में से किसी एक को मिलाने पर चौपन, दो-दो के मिलाने पर पचपन और तीनों के मिलाने पर छप्पन प्रकृतिक उदयस्थान है । तथा Jain Education international - ― For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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