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पंचसंग्रह : ५
उच्छ्वासपर्याप्ति से पर्याप्त उन्हीं के पूर्वोक्त त्रेपन के उदय में श्वासोच्छ्वास के मिलाने पर चौपन का उदय होता है । उनमें भय, जुगुप्सा और निद्रा में से एक-एक को मिलाने पर पचपन, दो-दो को मिलाने पर छप्पन और तीनों को मिलाने पर सत्तावन प्रकृतियों का उदयस्थान होता है । तथा
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भाषापर्याप्ति से पर्याप्त के पूर्वोक्त चौपन में स्वर का उदय बढ़ाने पर पचपन का उदय होता है । उनमें भय, जुगुप्सा और निद्रा में से एक-एक को मिलाने पर छप्पन, दो-दो को मिलाने पर सत्तावन और तीनों को मिलाने पर अट्ठावन प्रकृतियों का उदयस्थान होता है ।
तथा
पूर्वोक्त पचपन प्रकृतियों में तिर्यंचाश्रयी उद्योत का उदय बढ़ाने पर छप्पन का उदयस्थान होता है । उनमें भय, जुगुप्सा और निद्रा में से एक - एक को मिलाने पर सत्तावन, दो-दो को मिलाने पर अट्ठावन और तीनों को मिलाने पर उनसठ प्रकृतियों का उदयस्थान होता है ।
इस प्रकार तिर्यंचों में एक समय में एक जीव के अधिक से अधिक उनसठ प्रकृतियों का उदय होता है । जिनमें ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणपंचक, वेदनीय एक, मोहनीय दस, आयु एक, गोत्र एक, अन्तरायपंचक और नामकर्म की इकतीस प्रकृतियां होती हैं ।
देवादि भिन्न-भिन्न जीवों की अपेक्षा उदयस्थानों का विचार करने पर एक-एक उदयस्थान अनेक प्रकार से होता है । यहाँ उदयस्थानों की दिशा मात्र बतलाई है, इसलिए भिन्न-भिन्न जीवों की अपेक्षा उदयस्थानों का विचार स्वयमेव कर लेना चाहिये ।
प्रश्न -- मिथ्यादृष्टि के मोहनीय की सात प्रकृतियों का उदय होने पर भी विग्रहगति में नामकर्म की इक्कीस प्रकृतियों के उदय में वर्तमान जीव के पैंतालीस प्रकृतियों का उदयस्थान क्यों सम्भव नहीं और छियालीस का क्यों कहा है ?
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