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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १६
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प्रकृतिक उदयस्थान होता है। तत्पश्चात् उसमें सम्यक्त्वमोहनीय, भय, जुगुप्सा और निद्रा इन चार प्रकृतियों में से कोई भी एक प्रकृति को मिलाने पर बावन प्रकृतिक, कोई भी दो मिलाने पर वेपन प्रकृतिक, कोई भी तीन प्रकृतियों को मिलाने पर चौपन प्रकृतिक और चारों प्रकृतियों को युगपत् मिलाने पर पचपन प्रकृतिक उदयस्थान होता है। अथवा
क्षायिक सम्यग्दृष्टि तिर्यंच, मनुष्य के अनन्तरोक्त इक्यावन प्रकृतियों में प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त होने के बाद श्वासोच्छवास को मिलाने पर बावन प्रकृतिक उदयस्थान होता है। उसमें सम्यक्त्वमोहनीय, भय, जुगुप्सा और निद्रा में से किसी एक प्रकृति को मिलाने पर वेपन प्रकृतिक, कोई दो मिलाने पर चौपन प्रकृतिक, कोई तीन मिलाने पर पचपन प्रकृतिक और चारों को युगपत् मिलाने पर छप्पन प्रकृतिक उदयस्थान होता है । अथवा__ श्वासोच्छवासपर्याप्ति से पर्याप्त हुए मनुष्य, तिर्यंच के जो बावन प्रकृतिक उदयस्थान कहा है, उसमें भाषापर्याप्ति से पर्याप्त होने के अनन्तर स्वर को मिलाने पर वेपन प्रकृतिक उदयस्थान होता है। उसमें सम्यक्त्वमोहनीय, भय, जुगुप्सा और निद्रा इन चार में से किसी एक प्रकृति को मिलाने पर चौपन प्रकृतिक, कोई भी दो मिलाने पर पचपन प्रकृतिक, कोई भी तीन मिलाने पर छप्पन प्रकृतिक और चारों को मिलाने पर सत्तावन प्रकृतिक उदयस्थान होता है और तिर्यंचाश्रयी उद्योत नाम को मिलाने पर अट्ठावन प्रकृतिक उदयस्थान होता है। उन अट्ठावन प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं
ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणचतुष्क और एक निद्रा, मोहनीय की अप्रत्याख्यानावरणादि कोई भी क्रोधादि तीन कषाय, एक युगल, एक वेद, सम्यक्त्वमोहनीय, भय और जुगुप्सा को मिलाकर कुल नौ प्रकृतियां, अंतरायपंचक, गोत्र एक, वेदनीय एक, आयु एक और नामकर्म की विग्रहगति में प्राप्त आनुपूर्वी से रहित बीस और औदारिकद्विक,
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