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पंचसंग्रह : ५ लाई हैं, उनमें शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त क्षायिक सम्यग्दृष्टि देव अथवा नारक के पराघात और अन्यतर विहायोगति के मिलाने पर पचास प्रकृतिक उदयस्थान होता है। उसमें सम्यक्त्वमोहनीय, भय और जुगुप्सा इन तीन में से किसी एक प्रकृति को मिलाने पर इक्यावन प्रकृतिक और सम्यक्त्वमोहनीय और भय, अथवा सम्यक्त्वमोहनीय
और जुगुप्सा, अथवा भय और जुगुप्सा कोई दो प्रकृतियों को मिलाने पर बावन प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इस प्रकार बावन प्रकृतिक उदयस्थान के तीन विकल्प हैं तथा तीनों को युगपत् मिलाने पर त्रेपन प्रकृतिक उदयस्थान होता है।
अब मनुष्यों, तिर्यंचों की अपेक्षा उनचास आदि प्रकृतिक उदयस्थानों को बतलाते हैं
पूर्व में जो चवालीस प्रकृतियां बतलाई हैं, उनमें से आनुपूर्वी को कम करके औदारिकद्विक, प्रत्येक, उपघात, समचतुरस्रसंस्थान और वज्रऋषभनाराचसंहनन इन छह प्रकृतियों को मिलाने पर उनचास प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यह स्थान भवस्थ क्षायिक सम्यग्दृष्टि तिर्यंच अथवा मनुष्य को होता है । इनमें सम्यक्त्वमोहनीय, भय और जुगुप्सा इन तीनों में से कोई एक प्रकृति को मिलाने पर पचास प्रकतिक उदयस्थान होता है तथा सम्यक्त्वमोहनीय और भय, अथवा सम्यक्त्व मोहनीय और जुगुप्सा अथवा भय और जुगुप्सा इन तीन विकल्पों में से कोई दो प्रकृतियों को मिलाने पर इक्यावन प्रकृतिक उदयस्थान होता है। सम्यक्त्वमोहनीय, भय और जुगुप्सा को युगपत् मिलाने पर बावन प्रकृतिक उदयस्थान होता है और इस बावन प्रकृतिक उदयस्थान में निद्रा को मिलाने पर त्रेपन प्रकृतिक उदयस्थान जानना चाहिये । अथवा
शरीरस्थ क्षायिक सम्यग्दृष्टि तिर्यंच और मनुष्य को पूर्व में जो उनचास प्रकृतियां कही हैं, उनमें शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त होने के पश्चात् पराघात और प्रशस्त विहायोगति को मिलाने पर इक्यावन
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