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धविधि - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १६
समस्त उत्तरप्रकृतियों के उदयस्थान, भूयस्कार आदि एक्कार बार तिचउक्कवीस गुणतीसओ य चउतीसा ।
चउआला
गुणसट्टी
उदयद्वाणाई
छव्वीसं ॥ १६ ॥
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शब्दार्थ - एक्कार - ग्यारह बार - बारह, तिचक्कवीस-तीन, चार अधिक बीस अर्थात् तेईस, चौबीस, गुणतोसओ - उनतीस से, य-और चडतोसा - चौंतीस, चऊआला - चवालीस से, गुणसट्ठी – उनसठ,
उवयट्ठणाई - उदयस्थान, छब्बीस-छब्बीस ।
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गाथार्थ - ग्यारह, बारह, तेईस, चौबीस, उनतीस से चौंतीस और चवालीस से उनसठ प्रकृति पर्यन्त छब्बीस उदयस्थान होते हैं ।
विशेषार्थ - गाथा में सामान्य से सभी कर्मों की उत्तरप्रकृतियों के उदयस्थान बतलाये हैं । यद्यपि सभी कर्मों की उदययोग्य एक सौ बाईस प्रकृतियां हैं । लेकिन प्रत्येक जीव को एक समय में उस जीब की योग्यताविशेष के कारण वे सभी प्रकृतियां उदय में नहीं आती हैं, किन्तु उनके उदय में अन्तर होता है । इसीलिये एक समय में एक जीव के जितनी प्रकृतियों का उदय संभव है, उस अपेक्षा से ये उदयस्थान माने गये हैं । इस दृष्टि से सामान्यतः सभी उत्तरप्रकृतियों के छब्बीस उदयस्थान होते हैं । जो इस प्रकार हैं
ग्यारह, बारह, तेईस, चोबीस तथा उनतीस से लेकर चौंतीस अर्थात् उनतीस, तीस, इकतीस, बत्तीस, तेतीस, चौंतीस और पैंतीस से तेतालीस तक के उदयस्थान संभव नहीं है । अतः चवालीस से लेकर उनसठ तक यानि चवालीस, पैंतालीस, छियालीस, सैंतालीस, अड़तालीस, उनचास पचास, इक्यावन, बावन, त्रेपन, चौपन, पचपन, छप्पन, सत्तावन, अट्ठावन, उनसठ प्रकृतिक, इस प्रकार कुल छब्बीस उदयस्थान होते हैं । इन उदयस्थानों का विवरण क्रमशः इस प्रकार है
मनुष्यगति, मनुष्यायु, पंचेन्द्रियजाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, अन्यतर वेदनीय और उच्चगोत्र, इन ग्यारह
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