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पंचसंग्रह : ५ प्रकृतियों का उदय सामान्य केवली भगवान को अयोगि अवस्था में और इसी अवस्था (अयोगि अवस्था) में तीर्थकर भगवान को तीर्थकरनामकर्म सहित बारह का उदय होता है।
यही अतीर्थकर और तीर्थंकर केवली के दोनों उदयस्थान अनुक्रम से अगुरुलघु, निर्माण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, तैजस, कार्षण, वर्णचतुष्क, इन बारह ध्र वोदया प्रकृतियों को मिलाने से क्रमशः तेईस
और चौबीस प्रकृतिक उदयस्थान होते हैं। ये दोनों उदयस्थान अनुक्रम से समुद्घात अवस्था में कार्मणकाययोग में वर्तमान सामान्य केवली और तीर्थकर केवली के होते हैं।
इन चार उदयस्थानों में एक भी भूयस्कार घटित नहीं होता है। क्योंकि कोई भी जीव अयोगि अवस्था से सयोगि अवस्था में आता नहीं है एवं सामान्य केवली तीर्थकरनाम के उदय को प्राप्त नहीं करता है। इसी कारण इनमें भूयस्कारोदय घटित नहीं होता है।
पूर्वोक्त तेईस और चौबीस प्रकृतिक उदयस्थान के साथ प्रत्येक, उपघात, औदारिकद्विक, छह संस्थान में से कोई एक संस्थान और प्रथम संहनन इन छह प्रकृतियों को जोड़ने पर उनतीस और तीस प्रकृतिक ये दो उदयस्थान होते हैं। यह दो उदयस्थान अनुक्रम से औदारिकमिश्रयोग में वर्तमान सामान्य केवली और तीर्थंकर केवली के होते हैं
और औदारिककाययोग में वर्तमान तथा स्वभावस्थ उन दोनों के पराघात, विहायोगति, उच्छवास और स्वर के उदय के साथ अनक्रम से तेतीस और चौंतीस का उदय होता है तथा योग का रोध करने पर जव स्वर का रोध होता है, तब स्वर का उदय न रहने से उस समय पूर्वोक्त तेतीस और चौंतीस में से एक प्रकृति के कम होने पर बत्तीस
और तेतीस का उदय होता है । तदनन्तर श्वासोच्छ्वास का रोध होने पर श्वासोच्छवास का उदय रुकता है, तब इकतीस और बत्तीस का उदय होता है। इस प्रकार छह उदयस्थान जानना चाहिए और पूर्व में
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