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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १८
उदयप्राप्त संस्थान, वज्रऋषभनाराच-संहनन, औदारिकद्विक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, अगुरुलघु, तैजस, कार्मण, वर्णचतुष्क और निर्माण इन बीस प्रकृतियों का उदयविच्छेद होने पर आठ का उदय होता है और उनतीस प्रकृति के उदय वाले तीर्थंकर केवली के उक्त बीस प्रकृतियों का उदयविच्छेद होने पर नौ का उदय होता है। इस प्रकार अट्ठाईस और उनतीस के उदय से आठ और नौ के उदय में जाने पर आठ और नौ प्रकृतिक उदय रूप दो अल्पतर होते हैं।।
इस प्रकार तीर्थंकर अतीर्थकर केवली की अपेक्षा समुद्घात और अयोगिपने को प्राप्त करने पर होने वाले नौ अल्पतरोदय जानना चाहिये तथा संसारी जीवों के इकतीस आदि उदयस्थानों से प्रारम्भ कर इक्कीस तक के कितने ही अल्पतर उदयस्थानों में संक्रमण होता है, जैसे कि इन्द्रियपर्याप्ति के पूर्ण होने के पश्चात् चौबीस या छब्बीस में से किसी भी उदयस्थान में रहते मरण होने पर इक्कीस के उदयस्थान में जाने पर इक्कीस का उदय रूप अल्पतर होता है तथा उद्योतसहित तीस के उदय में वर्तमान उत्तरवैक्रियशरीरी देव वैक्रियशरीर का संहरण करने के बाद उनतीस के उदय में जाता है, उस समय उनतीस का अल्पतर होता है।
इस प्रकार संसारी जीवों के कितने ही अल्पतर सम्भव हैं । परन्तु जिस संख्या वाले अल्पतर उनको होते हैं, उन अल्पतरों का पूर्वोक्त अल्पतरों में समावेश हो जाता है । अतः एक अल्पतर अनेक प्रकार से होता है यह समझना चाहिये, परन्तु अवधि के भेद से कारण अल्पतरों के भेदों की गणना नहीं किये जाने से नौ से अधिक अल्पतरोदय नहीं होते है। १ विज्ञजन स्पष्ट करने की कृपा करें
यह ठीक है कि इकतीस प्रकृति के उदय से अधिक नामकर्म की प्रकृतियों का उदयस्थान न होने से इकतीस प्रकृति का उदय रूप अल्पतर
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