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________________ पंचसंग्रह : ५ विहायोगति और सुस्वर-दुःस्वर में से कोई एक इस तरह चार प्रकृतियों के उदय का निरोध होने पर छब्बीस का उदय होता है और तीर्थकर के पराघात, उच्छ वास, प्रशस्तविहायोगति और सुस्वर का निरोध होने पर सत्ताईस का उदय होता है। इस प्रकार तीस और इकतीस के उदय से छब्बीस और सत्ताईस के उदय में जाने पर छब्बीस का उदयरूप और सत्ताईस का उदयरूप ये दो अल्पतर होते हैं तथा समुद्घात में प्रविष्ट अतीर्थंकरकेवली के तीसरे समय में कार्मणकाययोग में रहते उदयप्राप्त संस्थान, वज्रऋषभनाराचसंहनन, औदारिकद्विक, उपघात और प्रत्येक इन छह प्रकृतियों का रोध होने पर बीस का उदय होता है और तीर्थंकरकेवली के उस समय उक्त छह प्रकृतियों के उदय का रोध होने पर इक्कीस का उदय होता है । इस प्रकार छब्बीस और सत्ताईस के उदय से बीस और इक्कीस के उदय में जाने पर बीस और इक्कीस के उदय रूप दो अल्पतर होते हैं । इस प्रकार समुद्घात अवस्था में चार अल्पतर होते हैं । तथा- - अयोगिपने को प्राप्त करने पर तीर्थंकरकेवली को योग के रोधकाल में पूर्वोक्त इकतीस प्रकृतियों में से स्वर का उदय रुकने पर तीस का और उसके बाद उच्छ वास का उदय रुकने पर उनतीस का उदय होता है तथा सामान्यकेवली के पूर्वोक्त तीस प्रकृतियों में से स्वर के उदय का रोध होने पर उनतीस का और उच्छ वास के उदय का रोध हो तब अट्ठाईस का उदय होता है। इस प्रकार तीर्थंकर की अपेक्षा तीस और उनतीस के उदयरूप दो अल्पतर और सामान्यकेवली की अपेक्षा उनतीस और अट्ठाईस प्रकृतियों के उदयरूप दो अल्पतर, इस प्रकार चार अल्पतर होते हैं। किन्तु उनतीस का उदयरूप अल्पतर दोनों में आता है, इसलिए अवधि के कारण भिन्न अल्पतर की विवक्षा नहीं होने से उसे एक गिनकर तीन ही अल्पतर होते हैं। अट्ठाईस के उदय वाले अतीर्थंकर केवली के अयोगिदशा की प्राप्ति के प्रथम समय में पराघात, विहायोगति, प्रत्येक, उपघात, अन्यतम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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