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बंधविधि - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १८
E - (क) भाषापर्याप्ति से पर्याप्त हुए द्वीन्द्रिय जीव के उच्छवास सहित उनतीस प्रकृतियों में सुस्वर या दुःस्वर को मिलाने से तीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । अथवा प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त हुए के स्वर का उदय न होकर यदि उद्योत का उदय हो गया हो तो भी तीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के लिए भी जानना चाहिये ।
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(ख) तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव के उनतीस प्रकृतिक उदयस्थान में भाषापर्याप्ति से पर्याप्त हुए के सुस्वर या दुःस्वर के मिलाने से तीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । अथवा प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त के उनतीस प्रकृतिक उदयस्थान में उद्योत को मिला देने पर तीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है ।
(ग) वैक्रियशरीर करने वाले तिर्यच पंचेन्द्रिय के सुस्वर सहित उनतीस प्रकृतिक उदयस्थान में उद्योत को मिलाने पर तीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है ।
(घ) सामान्य मनुष्यों के भी पंचेन्द्रिय तिर्यंच के समान तीस प्रकृतिक उदयस्थान जानना चाहिये । परन्तु यहाँ उद्योत रहित कहना चाहिये । क्योंकि वैक्रिय और आहारक संयतों के सिवाय सामान्य मनुष्य के उद्योत का उदय नहीं होता है तथा तिर्यंचगतिद्विक के स्थान पर मनुष्यगतिद्विक कहना चाहिये ।
(ङ) वैक्रिय शरीर को करने वाले मनुष्यों के सुस्वर सहित उनतीस प्रकृतिक उदयस्थान में संयतों के उद्योत का उदय होने से उसको मिलाने पर तीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है ।
(च) आहारक संयतों में भाषापर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के स्वर सहित उनतीस प्रकृतिक उदयस्थान में उद्योत को मिलाने पर तीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है ।1
१ दिगम्बर पंचसंग्रह सप्ततिका अधिकार गा. १७० में आहारक शरीर के उदय वाले विशेष मनुष्यों के २५, २७, २८ और २६ प्रकृतिक ये चार
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