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. पंचसंग्रह : ५ अप्रशस्त विहायोगति में से कोई एक को मिलाने पर अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। ... (ग) वैक्रियशरीर को करने वाले तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों के सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान में प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीवों के उच्छवास को मिला देने पर अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। अथवा शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के यदि उद्योत का उदय हो तो भी अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है।
(घ) तिर्यंच पंचेन्द्रिय के अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान की तरह सामान्य मनुष्य का भी अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान जानना चाहिये । किन्तु तिर्यंचगतिद्विक के स्थान पर मनुष्यगतिद्विक कहना चाहिये।
(ङ) वैक्रियशरीर को करने वाले मनुष्य के सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान में प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के उच्छ्वास मिलाने पर अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । अथवा उत्तर वैक्रियशरीर को करने वाले संयतों के शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त होने पर पर्वोक्त सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान में उद्योत को मिलाने से अट्राईस प्रकृतिक उदयस्थान होता।
(च) आहारक संयतों के सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान में प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के उच्छवास को मिलाने से अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । अथवा शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त जीव के पूर्वोक्त सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान में उद्योत को मिलाने पर अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है।
(छ) अतीर्थंकर केवली के उनतीस प्रकृतिक उदयस्थान में से उच्छ. वास का निरोध होने पर उसे कम करने से अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है।
(ज) देवों के सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान में प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीवों के उच्छ वास को मिला देने पर अट्ठाईस प्रकृतिक
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