SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८२ पंचसंग्रह : ५ प्रकृतिक उदयस्थान जानना चाहिये। किन्तु द्वीन्द्रियजाति के स्थान पर त्रीन्द्रिय के लिये त्रीन्द्रियजाति और चतुरिन्द्रिय के लिये चतुरिन्द्रियजाति कहना चाहिए। (ग) तिर्यंचपंचेन्द्रियप्रायोग्य इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान में से तिर्यंचगत्यानुपूर्वी को कम करके औदारिकद्विक, छह संस्थानों में से कोई एक संस्थान, छह संहननों में से कोई एक संहनन, उपघात और प्रत्येक इन छह प्रकृतियों को मिलाने से शरीरस्थ तिर्यंचपंचेन्द्रिय योग्य छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। (घ) पूर्वोक्त तिर्यंचपंचेन्द्रियप्रायोग्य छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान की तरह सामान्य मनुष्य का छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान समझना चाहिये । यहाँ मनुष्यगत्यानुपूर्वी को कम कर औदारिकद्विक आदि छह प्रकृतियां मिलाना चाहिये । (ङ) पूर्व में कहे गये अतीर्थ केवली के बीस प्रकृतिक उदयस्थान में भी औदारिकशरीर, औदारिकअंगोपांग, छह संस्थानों में से कोई एक संस्थान, वज्रऋषभनाराचसहनन, उपघात और प्रत्येक इन छह प्रकृतियों को मिलाने से भी मनुष्यप्रायोग्य छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यह स्थान अतीथंकर केवली के औदारिकमिश्रकाययोग के समय होता है। ६-(क) एकेन्द्रियप्रायोग्य छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान में प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त जीव के आतप और उद्योत में से किसी एक प्रकृति को मिलाने से सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। (ख) वैक्रियशरीर को करने वाले तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों के पच्चीस प्रकृतिक उदयस्थान में शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीवों के पराघात और प्रशस्त विहायोगति के मिलाने से सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy