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________________ मिला देने पर चौबीसप्रकृतिक उदयस्थान होता है । यह स्थान शरीरस्थ एकेन्द्रिय जीव के जानना चाहिये। ___ वायुकायिक जीव भी एकेन्द्रिय हैं । उनके वैक्रियशरीर को करते समय औदारिकशरीर के स्थान में वैक्रियशरीर होता है। अतः उनके औदारिकशरीर के स्थान पर वैक्रियशरीर के साथ भी चौबीसप्रकतिक उदयस्थान जानना चाहिये तथा उनके मात्र बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और अयश:कीति ये प्रकृतियां ही कहना चाहिये। क्योंकि तेज और वायुकायिक जीवों के साधारण और यश:कीर्ति का उदय नहीं होता है। ४-(क) शरीरस्थ एकेन्द्रिय जीव के चौबीसप्रकृतिक उदयस्थान में शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त हो जाने के बाद पराघात प्रकृति को मिला देने पर पच्चीसप्रकृतिक उदयस्थान होता है। (ख) पूर्व में कहे गये तिर्यंचपंचेन्द्रिय के इक्कीसप्रकृतिक उदयस्थान में वैक्रियशरीर को करने वाले तिर्यंचपंचेन्द्रियों की अपेक्षा वैक्रियशरीर, वैक्रिय-अंगोपांग, समचतुरस्रसंस्थान, उपघात और प्रत्येक इन पांच प्रकृतियों को मिलाने और तिर्यंचगत्यानुपूर्वी को कम करने पर पच्चीसप्रकृतिक उदयस्थान होता है। (ग) नामकर्म की बारह ध्र वोदया प्रकृतियों के साथ मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, वैक्रियद्विक, समचतुरस्रसंस्थान, उपघात, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, सुभग-दुर्भग में से एक, आदेय-अनादेय में से एक, यशःकीर्ति-अयशःकीति में से एक इन तेरह प्रकृतियों को मिलाने से वैक्रियशरीर को करने वाले मनुष्यों की अपेक्षा पच्चीसप्रकृतिक उदयस्थान होता है । १ गो कर्मकाण्ड में वैक्रियशरीर और वैक्रिय-अंगोपांग का उदय देव, नारकों के ही बताया है, मनुष्य-तिर्यंचों के नहीं। इसलिये वहाँ वैक्रियशरीर की अपेक्षा मनुष्यों, वायुकायिक और पंचेन्द्रियतिथंचों में उदयस्थानों का निर्देश नहीं किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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