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________________ ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणषट्क, एक वेदनीय, नौ मोहनीय, एक आयु, एक गोत्र, अंतरायपंचक और नामकर्म की इकतीस प्रकृतियां । १५ - वहाँ से देशविरतगुणस्थान में आकर नामकर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों को बांधने के साथ प्रत्याख्यानावरणचतुष्क अधिक बांधने पर साठप्रकृतिक बंधरूप पन्द्रहवां भूयस्कार होता है । १६ - तीर्थंकरनाम सहित नामकर्म की उनतीस प्रकृतियों को बांधने पर इकसठप्रकृतिक बंधरूप सोलहवां भूयस्कार होता है । वे इकसठ प्रकृतियां इस प्रकार हैं ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणषट्क, एक वेदनीय, मोहनीय तेरह, आयु एक, गोत्र एक, अन्तरायपंचक और नामकर्म की उनतीस प्रकृतियां | १७ - वहाँ से अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान में आकर नामकर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों को बांधने और आयु का बंध न करने एवं अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क अधिक बांधने पर त्रेसठ प्रकृतियों का बंधरूप सत्रहवां भूयस्कार होता है । यहाँ पूर्वोक्त इकसठ में से आयु और तीर्थकरनाम को कम करके अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क को जोड़ने से त्रेसठ प्रकृतियां होती हैं । जो इस प्रकार जानना चाहिये - ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणषट्क, एक वेदनीय, सत्रह मोहनीय, एक गोत्र, अंतरायपंचक और नामकर्म की अट्ठाईस प्रकृतियां । १८ - उसी अविरतसम्यग्दृष्टि के नामकर्म की उनतीस प्रकृतियों को बांधने पर चौंसठप्रकृतिक बंधरूप अठारहवां भूयस्कार होता है । १६ - उसी अविरतसम्यग्दृष्टि के देवगति में मनुष्यगति - प्रायोग्य नामकर्म की तीस प्रकृतियों के गंध होने पर पैंसठप्रकृतिक बंधरूप उन्नीसवां भूयस्कार होता है । २० - उसी जीव के आयु का बंध करने पर छियासठप्रकृतिक बंधरूप बीसवां भूयस्कार जानना चाहिये। वे छियासठ प्रकृतियां इस प्रकार हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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