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________________ । विधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १८ ६७ ६-वहाँ से च्युत होने पर उसी गुणस्थान में पुरुषवेद का अधिक बंध होने पर बाईसप्रकृतिक बंधरूप छठा भूयस्कार होता है। ___७-तत्पश्चात् अनुक्रम से अपूर्वकरणगुणस्थान में प्रवेश करने पर भय, जुगुप्सा, हास्य और रति इन चार प्रकृतियों को अधिक बांधने पर छब्बीसप्रकृतिक बंघरूप सातवां भूयस्कार होता है। ८-इसी गुणस्थान में पूर्व से उतरकर नामकर्म की देवगतिप्रायोग्य अट्ठाईस प्रकृतियों को बांधने पर परन्तु पूर्वोक्त छब्बीस प्रकतियों में यशःकीर्ति का समावेश होने से उस एक को कम करके शेष सत्ताईस प्रकृतियों को मिलाने से पनप्रकृतिक बंधरूप आठवां भूयस्कार होता है। ६-तीर्थंकरनामकर्म सहित देवगति-प्रायोग्य उनतीस प्रकृतियों को बांधने पर चौपनप्रकृतिक बंधरूप नौवां भूयस्कार होता है। १०-आहारकद्विक सहित देवगति-प्रायोग्य तीस प्रकृतियों को बांधने पर पचपनप्रकृतिक धरूप दसवां भूयस्कार होता है । - ११–आहारकद्विक और तीर्थंकरनाम सहित इकतीस प्रकृतियों को बांधने पर छप्पनप्रकृतिक बंधरूप ग्यारहवां भूयस्कार होता है। १२-तत्पश्चात् नीचे उतरने पर इसी गुणस्थान में नामकर्म की तीस प्रकृतियों के साथ निद्राद्विक को बांधने पर सत्तावनप्रकृतिक बंधरूप बारहवां भूयस्कार होता है। १३–नामकर्म की इकतीस प्रकृतियों के साथ निद्राद्विक को बांधने पर अट्ठावनप्रकृतिक बंधरूप तेरहवां भूयस्कार होता है। १४-तत्पश्चात् अप्रमत्तसंयतगुणस्थान में प्राप्त हुई देवायु के साथ पूर्वोक्त अट्ठावन प्रकृतियों को बांधने पर उनसठप्रकृतिक बंधरूप चौदहवां भूयस्कार जानना चाहिये। ये उनसठ प्रकृतियां इस प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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