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बंधविधि प्ररूपणा अधिकार गाथा १६-१७
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स्कार सात न होकर छह होने का कारण यह है कि इकतीसप्रकृतिक बंधस्थान से उतर कर आठवें गुणस्थान के सातवें भाग में जो एकप्रकृतिक बंध होता है, वह इकतीस की अपेक्षा बड़ा नहीं है-न एकती गुरु जहा । इसीलिये नामकर्म के भूयस्कारगंध छह ही होते हैं ।
प्रश्न - उपशमणि से गिरते हुए यशः कीर्ति रूप एक प्रकृतिक बंध कर आठवें गुणस्थान के छठे भाग में जीव इकतीस के बंधस्थान में भी जाता है और वह इकतीस का बंध एक प्रकृति की अपेक्षा से भूयस्कार है | अतः सात भूयस्कार मानना युक्तियुक्त ही है । जैसा कि शतक-चूर्णि में बताया है
'एक्काओ वि एक्कतीसं जाइत्ति भूयोगारा सत्त ।' अर्थात् एक के बंध से भी इकतीस के बंध में जाया जाता है, इसलिये भूयस्कार सात हैं ।
उत्तर - यह मंतव्य अयोग्य है। इसका कारण यह है कि अट्ठाईस आदि गंध की अपेक्षा से इकतीस का बंधरूप भूयस्कार पहले ही ग्रहण कर लिया गया है। एक के गंध से इकतीस के बंध में जाये अथवा अट्ठाईस आदि प्रकृति के बंध से इकतोस के बंध में जाये, किन्तु इन दोनों में इकतीस के बंधरूप भूयस्कार का तो एक ही रूप है । अवधि के भेद से भिन्न भूयस्कार की विवक्षा नहीं होती है । यदि अवधि के भेद से भिन्न-भिन्न भूयस्कार की विवक्षा की जाये तो उक्त संख्या से भी अधिक भूयस्कार हो सकते हैं । वे इस प्रकार कि किसी समय अट्ठाईस के बंध से, किसी समय उनतीस के बंध से, किसी समय तीस के बंध से, किसी समय एक प्रकृति के बध से इकतीस के बंध में जाता है तथा किसी समय तेईस के बंध से अट्ठाईस के बंध में, किसी समय पच्चीस आदि के बंध से अट्ठाईस के बंध में जाता है। इस प्रकार यदि अवधि के भेद से भिन्न-भिन्न भूयस्कारों की विवक्षा की जाये तो सात से
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