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पंचसंग्रह : ५ तेईस का बंध करके पच्चीस का बांध करना, पच्चीस का बंध करके छब्बीस का बंध करना, छब्बीस का बंध करके अट्ठाईस का बंध करना, अट्राईस का बंध करके उनतीस का बंध करना, उनतीस का बंध करके तीस का बंध करना, आहारकद्विक सहित तीस का बंध करके इकतीस का बंध करना, इस प्रकार नाम कर्म के छह भूयस्कारबंध होते हैं । अब अल्पतरबंध बतलाते हैं।
आहारकद्विक और तीर्थंकर नामकर्म सहित देवप्रायोग्य इकतीस प्रकृतियों को बांध कर मरण होने पर देव में जाकर तीर्थंकर नामकर्म सहित मनुष्यगतिप्रायोग्य तीस प्रकृतियों को बांधने पर पहला अल्पतर, देव में से च्युत होकर मनुष्यगति में आकर तीर्थंकर नामकर्म सहित देवगतिप्रायोग्य उनतीस प्रकृतियों को बांधने पर दूसरा अल्पतर, क्षपकौणि या उपशमश्रेणि में आरोहण करते समय अपूर्वकरणगुणस्थान में देवगतियोग्य अट्ठाईस आदि चार बंधस्थानों से एकप्रकृतिक बांधस्थान का बंध करने पर तीसरा अल्पतर, मनुष्यगति या तिर्यंचगति प्रायोग्य उनतीस प्रकृतियों को बांध कर देव या नरकगति प्रायोग्य अट्ठाईस का बंध करने पर चौथा अल्पतर, अट्ठाईस के बंध से एकेन्द्रियप्रायोग्य छब्बीस का बंध करने पर पांचवां अल्पतर तथा छब्बीस के बंध से पच्चीस का और पच्चीस से तेईस का बंध करने पर छठा और सातवां अल्पतर होता है। इस प्रकार नामकर्म के बंधस्थानों के सात अल्पतरबंध होते हैं।
नामकर्म के आठ बंधस्थानों में सात अल्पतरबंध की तरह भूय
अट्ठाईस प्रकृतियों का बंध करता है । इसी प्रकार अनुत्तरवासी देव मनुष्यगतियोग्य उनतीस या तीस का बंध तेतीम सागरोपम पर्यन्त करता है। सप्तम पृथ्वी का नारक तिर्यंचयोग्य उनतीस या उद्योत सहित तीस का बंध तेतीस सागरोपम पर्यन्त करता है। शेष बंधस्थानों का काल
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