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________________ पंचसंग्रह : ५ सातवां और दो का बंध करके एक का बंध करने पर आठवां अल्पतरबंध होता है । इस प्रकार मोहनीय के बंधस्थानों के आठ अल्पतरबंघ होते हैं । ५८ श मोहनीय कर्म के दस बंधस्थान में जैसे भूयस्कारबंध नौ होते हैं, उसी प्रकार अल्पतरबंध नौ न होकर आठ होने का कारण यह है कि 'मिच्छाओ सासणत्तं न' अर्थात् कोई भी जीव मिथ्यात्वगुणस्थान से सासादन में नहीं जाता है, इसलिये आठ अल्पतरबंध होते हैं। यानी जैसे ऊपर के गुणस्थान से पतित होने पर भूयस्कारबंध होता है, उसी प्रकार पहले गुणस्थान से ऊपर के गुणस्थान में चढ़ने पर अल्प बंध करने पर अल्पतरबंध होता है । परन्तु बाईस के बंधस्थान से कोई भी जीव इक्कीस के बंधस्थान में नहीं जाता है । क्योंकि बाईस का बंध मिथ्यादृष्टि के होता है और इक्कीस का बंध सासादनसम्यग्दृष्टि के होता है । परन्तु मिथ्यादृष्टि सासादन में आता नहीं है, लेकिन सासादन से मिथ्यात्व में ही जाता है, जिससे बाईस के बंध से इक्कीस के बंध में नहीं जाने से अल्पतर आठ ही होते हैं । उक्त कथन का सारांश यह है कि यदि जीव पहले गुणस्थान से दूसरे गुणस्थान में जाता तो वह इक्कीसप्रकृतिक अल्पतरबंध कर सकता था । परन्तु मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टि नहीं हो सकता है । क्योंकि सासादनगुणस्थान आरोहण का ज्ञापक नहीं है किन्तु ऊपर के गुणस्थानों से पतन करने वाले जीव की स्थितिविशेष का दर्शक है । उपशमसम्यग्दृष्टि ही सासादनगुणस्थान को प्राप्त करता है ।" १ कर्म प्रकृति ( उपशमनाकरण) और उसकी प्राचीन चूर्ण में इसके कारण का उल्लेख किया है छालिग सेसा परं आसाणं कोइ गच्छेज्जा ||२३|| उपशमसम्यक्त्व के काल में कम से कम एक समय और अधिक से अधिक छह आवली शेष रहने पर कोई-कोई उपशमसम्यग्दृष्टि सासादन सम्यक्त्व को प्राप्त करता है । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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