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विधि- प्ररूपणा अधिकार : गाथा १६-१७
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मोहगुणस्थान से भवक्षय होने से गिरते हुए अनुत्तर देवों में उत्पन्न होता है तब पहले समय में चौथे गुणस्थान में दर्शनावरण की छह प्रकृतियों का बंध करने से छह का बंधरूप दूसरा अवक्तव्यबंध होता है । जिसमे दर्शनावरणकर्म में दो अवक्तव्यबंध होते हैं ।
इस प्रकार दर्शनावरणकर्म में दो भूयस्कार, दो अल्पतर और दो अवक्तव्य बंध होते हैं तथा बंधस्थान तीन होने से अवस्थितबंध तीन जानना चाहिये ।
मोहनीय कर्म - इसके दस बंधस्थानों में नौ भूयस्कार, आठ अल्पतर और दो अवक्तव्य बंध होते हैं । जिनका विवरण इस प्रकार है
एक को बांध कर दो का बंध करने पर पहला भूयस्कारबंध होता । इसी प्रकार दो को बांध कर तीन का बंध करने पर दूसरा भूयस्कार, तीन को बांध कर चार का बंध करने पर तीसरा, चार को बांध कर पांच का बंध करने पर चौथा, पांच का बंध करके नौ का बंध करने पर पांचवां, नौ का बंध करके तेरह का बंध करने पर छठा, तेरह का बंध करके सत्रह का बंध करने पर सातवां सत्रह का बंध करके इक्कीस का बंध करने पर आठवां और इक्कीस का बंध करके बाईस का बंध करने पर नौवां भूयस्कारबंध होता है ।
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इस प्रकार मोहनीयकर्म के बंधस्थानों में नौ भूयस्कारबंध जानना चाहिये । अल्पतरबंध आठ होते हैं, जो इस प्रकार हैं
बाईस का बंध करके सत्रह का बंध करने पर पहला अल्पतरबंध होता है । इसी प्रकार सत्रह का बंध करके तेरह का बंध करने पर दूसरा, तेरह का बंध करके नौ का बंध करने पर तीसरा, नौ का बंध करके पांच का बंध करने पर चौथा, पांच का बंध करके चार का बंध करने पर पांचवां, चार का बंध करके तीन का बंध करने पर छठा, तीन का बंध करके दो का बंध करने पर
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