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________________ बंधहेतु - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२ ६१ इस प्रकार ग्यारह हेतु चार प्रकार से होते हैं और उनके कुल भंगों का योग ( २८,०००x२१,००० २,१०००X८४०० = ७८,४०० ) अठहत्तर हजार चार सौ है । ग्यारह हेतुओं के भंगों का कथन करने के पश्चात् अब बारह हेतुओं के भंगों को बतलाते हैं १. पूर्वोक्त नौ बंधहेतुओं में चार काय का वध मिलाने से बारह हेतु होते हैं। छह काय के चतुष्कसंयोग में पन्द्रह भंग होते हैं । अतः कायवध के स्थान में पन्द्रह को ग्रहण कर पूर्वोक्त क्रमानुसार अंकों का गुणा करने पर ( २१.०००) इक्कीस हजार भंग होते हैं । २. अथवा कायत्रिकवध और भय को मिलाने से भी बारह हेतु होते हैं । यहाँ कायवध के स्थान में बीस को रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर (२८,००० ) अट्ठाईस हजार भंग होते हैं । २. अथवा जुगुप्सा और कार्यत्रिकवध को मिलाने से भी बारह हेतु होते हैं । इनके ऊपर कहे गये अनुरूप ( २८,००० ) अट्ठाईस हजार भंग होते हैं । ४. अथवा भय, जुगुप्सा और कार्यद्विकवध को मिलाने से भी बारह हेतु होते हैं । यहाँ कायवधस्थान में पन्द्रह को रखकर अंकों का परस्पर गुणा करने पर पूर्ववत् (२१,००० ) इक्कीस हजार भंग होते हैं । इस प्रकार बारह हेतु चार प्रकार से होते हैं और इन चार प्रकार के कुल भंगों का योग (२१,०००+२८,०००+२८,०००+२१,०००= ८०००) अट्ठानवे हजार है । अब तेरह बंधहेतुओं का विचार करते हैं १. पूर्वोक्त नौ बंधहेतुओं में कायपंचकवध को लेने पर तेरह हेतु होते हैं । छह काय के पंचसहयोगी भंग छह होते हैं । अतः कार्याहिंसा के स्थान पर छह को रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर ( ८,४०० ) चौरासी सौ भंग होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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