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________________ ६० पंचसंग्रह : ४ अब दस बंधहेतु के भंग बतलाते हैं १. पूर्वोक्त नौ हेतुओं में कार्याद्विकवध को मिलाने पर दस हेतु होते हैं। छह काय के द्विक्संयोग में पन्द्रह भंग होते हैं । इसलिये कायवथ के स्थान पर पन्द्रह रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर (२१,०००) इक्कीस हजार भंग होते हैं । २. अथवा भय को मिलाने से भी दस हेतु होते हैं । उनके भंग पूर्ववत् ( ८,४०० ) चौरासी सौ होते हैं । ३. अथवा जुगुप्सा को मिलाने पर भी दस बंधहेतु होते हैं । उनके भी भंग (८,४०० ) चौरासी सौ होते हैं । इस प्रकार दस बंधहेतु तीन प्रकार से होते हैं । उनके कुलभंगों का योग ( २,१०००+८,४००+८,४००=३७,८०० ) सैंतीस हजार आठ सौ होता है । अब ग्यारह बंधहेतु और उनके भंगों को बतलाते हैं- १. पूर्वोक्त नौ बंधहेतुओं में कायत्रिकवध को मिलाने से ग्यारह हेतु होते हैं और छह काय के त्रिकसंयोग में बीस भंग होते हैं। अत: कायवध के स्थान में बीस के अंक को रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर ( २८,०००) भंग होते हैं । २. अथवा भय और कार्याद्विकवध को मिलाने से भी ग्यारह हेतु होते हैं । कायद्विकवध के पन्द्रह भंग होने से उनको कायवध के स्थान पर रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर ( २१००० ) इक्कीस हजार भंग होते हैं । ३. अथवा जुगुप्सा और कार्यद्विकवध को मिलाने से भी ग्यारह हेतु होते हैं । उनके भी ऊपर कहे गये अनुसार (२१००० ) इक्कीस हजार भंग होते हैं । ४. अथवा भय और जुगुप्सा को मिलाने से भी ग्यारह हेतु होते हैं । उनके पूर्ववत् ( ८४०० ) चौरासी सौ भंग होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only ¿ www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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