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________________ ६२ पंचसंग्रह : ४ २. अथवा कायचतुष्कवध और भय को मिलाने से भी तेरह हेतु होते हैं। अतः कायवधस्थान में पन्द्रह को रखकर अंकों का गुणा करने पर (२१,०००) इक्कीस हजार भंग होते हैं। ३. अथवा जुगुप्सा और काय चतुष्कवध को मिलाने पर भी तेरह बंधहेतु होते हैं। इनके भी ऊपर कहे अनुसार (२१,०००) इक्कीस हजार भंग होते हैं। ४. अथवा भय, जुगुप्सा और कायत्रिकवध को मिलाने पर भी तेरह बंधहेतु होते हैं। कायवधस्थान में त्रिकसंयोगी बीस भंग रखकर क्रम से अंकों का गुणा करने पर (२८,०००) अट्ठाईस हजार भंग होते हैं। इस प्रकार तेरह हेतु चार प्रकार से होते हैं। उनके कुल भंगों का योग (८,४००+२१,०००+२१,०००+२८,००० =७८,४००) अठहत्तर हजार चार सौ है। अब चौदह बंधहेतुओं के भंगों को बतलाते हैं १. पूर्वोक्त नौ हेतुओं में छह काय का वध मिलाने पर चौदह हतु होते हैं। छह काय का षट्संयोगी भंग एक होता है। अतः कायवधस्थान में एक अंक को ग्रहण करके पूर्वोक्त प्रकार से अंकों का गुणा करने पर (१,४००) चौदह सौ भंग होते हैं। २. अथवा कायपंचकवध और भय को ग्रहण करने से भी चौदह बंधहेतु होते हैं। छह काय के कायपंचकभंग छह होते हैं। अतः कायवध के स्थान में छह को रखकर अंकों का गुणा करने पर (८,४००) चौरासी सौ भंग होते हैं। ३. अथवा जुगुप्सा और कायपंचकवध को ग्रहण करने से भी चौदह हेतु होते हैं। इनके ऊपर कहे गये अनुसार (८,४००) चौरासी सौ भंग होते हैं। ४. अथवा भय, जुगुप्सा और कायचतुष्कवध को ग्रहण करने से भी चौदह हेतु होते हैं। यहाँ कायवधस्थान में पन्द्रह को रखकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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