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________________ बंधहेतु प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३३ इस प्रकार तेरह बंधहेतु आठ प्रकार से होते हैं । जिनके कुल भंग (४६,८०० + ६०,००० + १,२०,००० + १,२०,००० + १,५६,०००+ ε०,०००+१,१७,००० + १,१७,००० = ८,५६,८००) आठ लाख छप्पन हजार आठ सौ होते हैं । इस तरह तेरह हेतुओं के आठ प्रकारों और उनके गंगों को जानना चाहिए। अब चौदह बंधहेतुओं के प्रकारों और उनके भंगों को बतलाते हैं १. पूर्वोक्त जघन्यपदभावी दस बंधहेतुओं में एक कायवध के स्थान पर कायपंचक के वध को ग्रहण करने पर चौदह बंधहेतु होते हैं। छह काय के पांच के संयोग में छह भंग होते हैं । अतः कायवध के स्थान पर छह का अंक रखकर पूर्वोक्त रीति से अंकों का गुणा करने से (३६,००० ) छत्तीस हजार भंग होते हैं । २. अथवा भय और कायचतुष्कवध को ग्रहण करने पर भी चौदह हेतु होते हैं और छह काय के चतुष्कसंयोग में पन्द्रह भंग होते हैं । अतएव कायवध के स्थान पर पन्द्रह को रखने पर पूर्वोक्त प्रकार से अंकों का परस्पर गुणा करने से (६०,०००) नब्बे हजार भंग होंगे । ३. इसी प्रकार जुगुप्सा और कायचतुष्कवध को लेने पर भी चौदह हेतु होते हैं । इनके (६०,०००) नब्बे हजार भंग होंगे । ४. अथवा अनन्तानुबंधों और कायचतुष्कवध लेने पर भी चौदह हेतु होते हैं । अनन्तानुबंधी के उदय में योग तेरह होते हैं और कायचतुष्क के संयोगी पन्द्रह भंग होते हैं इसलिए योग के स्थान पर तेरह और कायवध के स्थान पर पन्द्रह रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर (१.१७,०००) एक लाख सत्रह हजार भंग होंगे । ५. अथवा भय, जुगुप्सा और कार्यत्रिक के वध को ग्रहण करने से भी चौदह हेत होते हैं। कायत्रिक के संयोग के बीस भंग होते हैं । अतः कायवध के स्थान पर बीस का अंक रखकर अंकों का परस्पर गुणा करने पर (१,२०,०००) एक लाख बीस हजार भंग होंगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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