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________________ पंचसंग्रह ६. अथवा भय, अनन्तानुबन्धी और कार्यत्रिकवध को लेने से भी चौदह हेतु होते हैं । उनके पूर्ववत् ( १,५६,००० ) एक लाख छप्पन हजार भंग होंगे । ३४ ७. इसी प्रकार जुगुप्सा, अनन्तानुबंधी और कार्यत्रिकवध के भी (१,५६,०००) एक लाख छप्पन हजार भंग होंगे । ८. अथवा भय, जुगुप्सा, अनन्तानुबंधी और कार्यद्विकवध को लेने पर भी चौदह हेतु होते हैं । उनके पूर्वोक्त विधि के अनुसार गुणा करने पर (१,१७,०००) एक लाख सत्रह हजार भंग होंगे । इस प्रकार चौदह बंधहेतु आठ प्रकार से होते हैं और इनके कुल भंगों की संख्या (३६,००० + ६०,०००+ ६०,०००+१,१७,००० + १,२०,००० + १,५६,०००+१,५६,००० + १,१७,००० = ८८२०००) आठ लाख बयासी हजार होती है । अब पन्द्रह बंधहेतु के प्रकारों व भंगों का प्रतिपादन करते हैं१. पूर्वोक्त दस बंधहेतुओं में छहों काय की हिंसा को ग्रहण करने से पन्द्रह हेतु होते हैं | कार्यहिंसा का छह के संयोग में एक ही भंग होता है । अतः पूर्वोक्त अंकों में कायवध के स्थान पर एक का अंक रखकर अनुक्रम से अंकों का गुणा करने पर (६,००० ) छह हजार भंग होते हैं । २. अथवा भय और कायपंचकवध को ग्रहण करने से भी पन्द्रह हेतु होते हैं । छह काय के पांच के संयोग में छह भंग होते हैं । उनका पूर्वोक्त क्रम से गुणा करने पर (३६,००० ) छत्तीस हजार भंग होते हैं । ३. इसी तरह जुगुप्सा और कायपंचकवध के भी (३६,००० ) छत्तीस हजार भंग जानना चाहिए । ४. अथवा अनन्तानुबंधी और कायपंचकवध लेने से भी पन्द्रह हेतु होते हैं । अनन्तानुबन्धी के उदय में तेरह योग लिये जाने और कार्याहिंसा के पांच के संयोग में छह भंग होने से योग और काय के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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