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________________ १५४ पंचसंग्रह : ४ इन तीनों विकल्पों के कुल भंगों का जोड़ (१४४०+१७२८०+२१६०० = ४०३२०) चालीस हजार तीन सौ बीस है। अब पन्द्रह बंधप्रत्यय, उनके विकल्प और भंगों को बतलाते हैं । पन्द्रह बंधप्रत्ययों के दो विकल्प इस प्रकार हैं (क) इन्द्रिय एक, काय छह, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हारयादि युगल एक, भयद्विक में से एक, और योग एक ये पन्द्रह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार जानना चाहिए १+६+३+१+२+१+१=१५ ।। (ख) इन्द्रिय एक, काय पांच, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, ये पन्द्रह बंधप्रत्यय होते हैं। इनकी अंकसंदृष्टि का रूप इस प्रकार है १+५+३+१+२+२+१=१५ । इन दोनों विकल्पो के भंग इस प्रकार हैं(क) ६४१४४४३ ४२४२४१०=२८८० भंग होते हैं। (ख) ६x६४४४३४१x१०=८६४० भंग होते हैं। इन दोनों विकल्पों के कुल भंगों का कुल जोड़ (२८८०+८६४० = ११५२०) ग्यारह हजार पोच सौ बीस है। अब सोलह बंधप्रत्यय बतलाते हैं । मिश्र गुणस्थान में इन्द्रिय एक, काय छह, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, ये सोलह बंधप्रत्यय होते है । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+६+३+१+२+२+१=१६ । इनके भंग इस प्रकार है६४१X४४ ३४२X १० = १४४० भंग होते हैं । मिश्रगुण स्थान में नौ से सोलह तक के बंधप्रत्ग्रयों के सर्व मंगों का प्रमाण का विवरण और जोड़ इस प्रकार है १ नौ बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग ८६४० हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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