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________________ बंधहेतु - प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १+४+३+१+२+१+१=१३ । (ग) इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल, योग एक, ये तेरह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है— १+३+३+१+२+२+१=१३ । इन तीनों विकल्पों के भंग इस प्रकार हैं (क) ६×६× ४X३X२ ×१०=८६४० भंग होते हैं । (ख) ६ × १५ × ४X३X२×२×१०= ४३२०० भंग होते हैं । (ग) ६×२०× ४X३X२×१० = २८८०० भंग होते हैं । इन तीनों विकल्पों के कुल भंगों का जोड़ (८६४०+४३२००+२८८०० = ८०६४० ) अस्सी हजार छह सौ चालीस होता है । १५३ अब चौदह बंधप्रत्यय, उनके विकल्प और मंगों को बतलाते हैं । (क) इन्द्रिय एक काय छह, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, ये चौदह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसं दृष्टि इस प्रकार है— १+६+३+१+२+१=१४। (ख) इन्द्रिय एक, काय पांच, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, वे चौदह बंधप्रत्यय हैं । इनका अंकों में रूप इस प्रकार जानना चाहिए— १+५+३+१+२+१+१=१४। (ग) इन्द्रिय एक, काय चार, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, ये चौदह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंक - दृष्टि इस प्रकार है - १+४+३+१+२+२+१=१४। इन तीनों विकल्पों के भंग इस प्रकार हैं (क) ६×१× ४×३x२×१० = १४४० भंग होते हैं । (ख) ६ x ६x४ x ३x२ x १ x १० = १७२८० भंग होते हैं । (ग) ६ × १५ × ४×३x२×१०= २१६०० भंग होते हैं । For Private & Personal Use Only Jain Education international www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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