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पंचसंग्रह : ४ अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय के बंधहेतु के भंग
सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त के पहला मिथ्यात्वगुणस्थान ही होने से जघन्यपद में मिथ्यात्वगुणस्थानवर्ती बादर एकेन्द्रिय की तरह सोलह बंधहेतु होते हैं । यहाँ पूर्ववत् भंग चौबीस (२४) होते हैं।
१. इन सोलह में भय को मिलाने पर सत्रह हेतु होते हैं । इनके भी चौबीस (२४) भंग जानना चाहिये।
२. अथवा जुगुप्सा को मिलाने पर भी सत्रह हेतु होते हैं । इनके भी चौबीस (२४) भंग होंगे।
उक्त सोलह हेतुओं में भय-जुगुप्सा को युगपत् मिलाने पर अठारह हेतु होते हैं । इनके भी चौबीस (२४) भंग जानना चाहिये ।
इस प्रकार अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय के कुल मिलाकर (२४+२४+ २४+२४=६६) छियानवै भंग होते हैं। पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय के बंधहेतु के भंग
पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय के जघन्यपद में पूर्वोक्त सोलह बंधहेतु होते हैं । यहाँ सिर्फ एक औदारिकयोग ही होता है। अतएव योग के स्थान पर एक का अंक रखना चाहिये। जिससे अंकस्थापना का रूप इस प्रकार होगामिथ्यात्व इन्द्रिय-अविरति कायवध कषाय युगल वेद योग
इन अंकों का अनुक्रम से गुणा करने पर सोलह बंधहेतु के आठ (८) भंग होते हैं।
१. इन सोलह में भय को मिलाने पर सत्रह हेतु होते हैं। इनके भी आठ (८) भंग जानना चाहिये।
२. अथवा जुगुप्सा का प्रक्षेप करने पर भी सत्रह बंधहेतु होंगे। इनके भी आठ (८) भंग होते हैं।
उक्त सोलह हेतुओं में भय-जुगुप्सा को युगपत् मिलाने पर अठारह हेतु हाते हैं। इनके भो आठ (८) भंग होते हैं और कुल मिलाकर
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