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________________ rang - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १८ १०१ २. अथवा जुगुप्सा को मिलाने पर सत्रह बंधहेतु होंगे। उनके भी अड़तालीस (४८) भंग जानना चाहिये । पूर्वोक्त सोलह बंधहेतुओं में युगपत् भय-जुगुप्सा का प्रक्षेप करने पर अठारह हेतु होते हैं । उनके भी अड़तालीस भंग जानना चाहिये और कुल मिलाकर मिथ्यादृष्टिगुणस्थान में पर्याप्त त्रीन्द्रिय के बंधहेतुओं के ( ४८ + ४८ + ४८+४८ = १६२) एक सौ बानवे भंग जानना चाहिये तथा त्रीन्द्रिय के बंधहेतुओं के कुल भंग ( ४८० + १६२ = ६७२) छह सौ तर होते हैं। इस प्रकार से त्रीन्द्रिय के बंधहेतु और उनके भंगों को जानना चाहिये | अब द्वीन्द्रिय के बंधहेतु और उनके भंगों को बतलाते हैं । अपर्याप्त द्वीन्द्रिय के बंधहेतु के भंग द्वीन्द्रिय जीव भी दो प्रकार के होते हैं- अपर्याप्त और पर्याप्त । इनमें से पहले अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों के बंधहेतु और उनके भंगों को बतलाते हैं । अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों के सासादनगुणस्थान में चतुरिन्द्रिय की तरह पन्द्रह बंधहेतु होते हैं । लेकिन यहाँ मात्र दो इन्द्रिय की अविरति में से अन्यतर एक इन्द्रिय की अविरति कहना चाहिये । अतः अंकस्थापना का रूप इस प्रकार होगा कायवध इन्द्रिय-अविरति युगल वेद कषाय योग १ २ २ १ ४ २ इन अंकों का क्रमशः गुणा करने पर पन्द्रह बंधहेतुओं के बत्तीस (३२) भंग होते हैं । १. इन पन्द्रह बंधहेतुओं में भय को मिलाने पर सोलह हेतु होते हैं । इनके भी बत्तीस (३२) भंग जानना चाहिये । २. अथवा जुगुप्सा का प्रक्षेप करने पर सोलह हेतुओं के भी बत्तीस (३२) भंग होंगे । पूर्वोक्त पन्द्रह हेतुओं में भय - जुगुप्सा को युगपत् मिलाने पर सत्रह बंधहेतु होते हैं । इनके भी बत्तीस (३२) भंग होंगे और सब मिलाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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