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________________ ६७ बंध हेतु - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १८ ( ३२ x २ = ६४) चौंसठ होते हैं । इतने अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय के सासादनगुणस्थान में पन्द्रह बंधहेतु के भंग होते हैं । १. इन पन्द्रह बंधहेतुओं में भय को मिलाने पर सोलह बंधहेतु होते हैं । इनको भी चौंसठ (६४) भंग हैं । २. अथवा जुगुप्सा का प्रक्षेप करने पर भी सोलह बंधहेतु होंगे । इनके भी चौसठ (६४) भंग जानना चाहिये । पूर्वोक्त पन्द्रह हेतुओं में युगपत् भय- जुगुप्सा को मिलाने पर सत्रह बंधहेतु होते हैं । इनके भी चौंसठ (६४) भंग होते हैं और कुल मिलाकर सासादनगुणस्थान में अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय के बंधहेतुओं के (६४+६४+६४+६४ = २५६ ) दो सौ छप्पन भंग जानना चाहिये । मिथ्यादृष्टि अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय के जघन्यपद में पूर्वोक्त पन्द्रह बंधहेतुओं में मिथ्यात्वमोहनीय का प्रक्षेप करने से सोलह बंधहेतु होते हैं । यहाँ कार्मण और औदारिक मिश्र और औदारिक यह तीन योग होते हैं। क्योंकि शरीरपर्याप्ति पूर्ण होने के बाद औदारिक काययोग घटित होता है । जिससे योग के स्थान पर तीन का अंक रखना चाहिये । अंकस्थापना का क्रम इस प्रकार हैमिथ्यात्व कायवध इन्द्रिय-अविरति युगल वेद कषाय योग १ १ ४ २ १ ४ ३ इन अंकों का परस्पर क्रमशः गुणा करने पर छियानवे (६६) भंग होते हैं । १. इन सोलह बंधहेतुओं में भय को मिलाने पर सत्रह हेतु होते हैं । इनके भी छियानवे (६६) भंग जानना चाहिये । २. अथवा जुगुप्सा को मिलाने पर भी सत्रह हेतु होते हैं । इनके भी छियानवे (९६) भंग होते हैं । पूर्वोक्त सोलह बंधहेतुओं में भय - जुगुप्सा को युगपत् मिलाने पर अठारह हेतु होते हैं । इनके भी छियानवे (९६) भंग होते हैं और सब मिलाने पर अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय मिथ्यादृष्टि के ( ९६+६+६+ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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