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पंचसंग्रह : ३ ____ इस प्रकार पिंडप्रकृति चौदह, अप्रतिपक्ष प्रत्येक प्रकृति आठ और सप्रतिपक्ष प्रत्येकप्रकृति बीस के क्रम से नामकर्म की बयालीस उत्तरप्रकृतियों का स्वरूप जानना चाहिये। अब पूर्वोक्त गति आदि चौदह पिंडप्रकृतियों में से उनके जितने जितने अवान्तर भेद होते हैं
और उनका कुल योग कितना है, इसका प्रतिपादन करते हैं। पिडप्रकृतियों के अवान्तर भेदों की संख्या गईयाईयाण भेया चउ पण पण ति पण पंच छ छक्कं । पण दुग पण? चउ दुग पिंडुत्तरभेय पणसट्ठी ॥६॥
शब्दार्थ-गईयाईयाण-गति आदि के, भेया-भेद, चउ-चार, पणपांच, पण-पांच, ति-तीन, पण-पांच, पंच-पांच, छ-छह, छक्कंछह, पण-पांच, दुग-दो, पणठ्ठ-पांच और आठ, चउ-चार, दुग-दो, पिडुत्तरभेय-पिंडप्रकृतियों के उत्तर भेद, पणसट्ठी-पैसठ।
गाथार्थ- गति आदि चौदह पिंडप्रकृतियों के उत्तरभेद अनुक्रम से चार, पांच, पांच, तीन, पांच, पांच, छह, छह, पांच, दो, पांच, आठ, चार और दो हैं । इन सबका योग पैंसठ होता है।
विशेषार्थ-चौदह पिंडप्रकृतियों के नाम गति आदि के क्रम से पूर्व में कहे जा चुके हैं । यहाँ उन्हीं के यथाक्रम चार से प्रारम्भ कर दो तक उत्तर भेदों की संख्या का निर्देश किया है । जो इस प्रकार है
गतिनाम के चार भेद, जातिनाम के पांच भेद, शरीरनाम के पांच भेद, अंगोपांगनाम के तीन भेद, बंधननाम के पांच भेद, संघातननाम के पांच भेद, संहनननाम के छह भेद, संस्थाननाम के छह भेद, वर्णनाम के पांच भेद, गंधनाम के दो भेद, रसनाम के पांच भेद, स्पर्शनाम के आठ भेद, आनुपूर्वीनाम के चार भेद और विहायोगतिनाम के दो भेद होते हैं।
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