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________________ बंधव्य-प्ररूपणा अधिकार · गाथा ८ ५१ शुभ-अशुभ-जिस कर्म के उदय से नाभि से ऊपर के अवयव शुभ होते हैं, वह शुभनामकर्म है और उससे विपरीत अशुभनामकर्म जानना चाहिये कि जिस कर्म के उदय से नाभि से नीचे के शरीर अवयव अशुभ होते हैं। जैसे कि मस्तक के स्पर्श किये जाने पर मनुष्य सन्तोष को प्राप्त करता है अर्थात् प्रसन्न होता है, क्योंकि वह शुभ है और यदि पैर से स्पर्श किया जाये तो रुष्ट होता है, क्योंकि पैर अशुभ हैं। ___शुभ और अशुभ की उक्त व्याख्या करने पर जिज्ञासु का प्रश्न प्रश्न-आपने नाभि से नीचे के पैर आदि अवयवों को अशुभ बताया है, फिर भी किसी प्रिय स्त्री के पादस्पर्श से कामी पुरुष को परम सन्तोष होता है । अतएव पैर आदि को अशुभ कहने पर उपर्युक्त शुभ, अशुभ के लक्षण में व्यभिचार, दोष होता है। जिस कर्म के उदय से शरीर के धातु-उपधातु यथास्थान स्थिर रहें, वह स्थिर नामकर्म है और जिस कर्म के उदय से शरीर के धातु और उपधातु स्थिर न रह सकें, वह अस्थिर नामकर्म है __ यस्योदयाद् रसादि धातूपधातूनां स्वस्थाने स्थिरभाव निर्वर्तनं भवति तत्स्थिरनाम । धातूपधातूनां स्थिरमावेनानिर्वर्तनं यतस्तदस्थिरनाम। -दि. कर्मप्रकृति पृ. ४७, ४६ १ दिगम्बर साहित्य में शुभ-अशुभ नामकर्न के लक्षण इस प्रकार बताये हैं जिस कर्म के उदय से शरीर के अवयव सुन्दर हों, वह शुभ नामकर्म है और जिस के उदय से शरीर के अवयव सुन्दर न हों, वह अशुभ नामकर्म है __यदुदयाद्रमणीया मस्तकादि प्रशस्तावयवा भवन्ति तच्छुभनाम । यदुदयेनारमणीयमस्तकाद्यवयवनिर्वर्तनं भवति तदशुभनाम । । -दि. कर्मप्रकृति पृ. ४७,४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001900
Book TitlePanchsangraha Part 03
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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