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पंचसंग्रह : ३ सुस्वर, सुभगाइज्जं-सुभग, आदेय, जसकित्ती-यशःकीर्ति, सेयरा-सप्रतिपक्षा, वीसं-वीस ।
गाथार्थ-त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुस्वर, सुभग, आदेय और यशःकीर्ति इनके इतर-प्रतिपक्ष सहित बीस भेद जानना चाहिए।
विशेषार्थ-गाथा में नामकर्म की सप्रतिपक्षा बीस प्रकृतियों के नाम बताने के लिए त्रस आदि दस नाम बतलाकर इनके प्रतिपक्षी नामों का संकेत करने के लिये 'सेयरा'-सेतरा (स-+इतरा) शब्द दिया है। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
नामकर्म की ये सप्रतिपक्षा बीस प्रकृतियां त्रसदशक और स्थावरदशक के भेद से दो प्रकार की हैं। त्रस से लेकर यशःकीर्ति तक के नामों की संख्या दस होने से इनको त्रसदशक और स्थावर से लेकर अयश:कीति पर्यन्त दस नाम होने से उनको स्थावरदशक कहते हैं। इन दोनों दशकों की दस-दस प्रकृतियों के नामों को मिलाने से कुल बीस भेद हो जाते हैं।
त्रसदशक की दस प्रकृतियों के नाम क्रमशः इस प्रकार हैं- (१) वसनाम, (२) बादरनाम, (३) पर्याप्तनाम, (४) प्रत्येकनाम, (५) स्थिरनाम, (६) शुभनाम, (७) सुभगनाम, (८) सुस्वरनाम, (६) आदेयनाम और (१०) यशःकीर्तिनाम।
स्थावरदशक की दस प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं-(१) स्थावरनाम, (२) सूक्ष्मनाम, (३) अपर्याप्तनाम, (४) साधारणनाम, (५) अस्थिरनाम, (६) अशुभनाम, (७) दुर्भगनाम, (८) दुःस्वरनाम, (६) अनादेयनाम और (१०) अयशःकीर्तिनाम।
इन बीस प्रकृतियों में से त्रसदशक की प्रकृतियों की गणना पुण्यप्रकृतियों में और स्थावरदशक की प्रकृतियों की गणना पापप्रकृतियों में की जाती है।
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