SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ पंचसंग्रह : ३ मानी जायेगीं । क्योंकि उत्तरगुणों की प्राप्ति होने पर तो सभी प्रकृतियों की सत्ता का नाश होता है । इसीलिये ध्रुवसत्ता के लक्षण में बताया है कि उत्तरगुणों की प्राप्ति से पूर्व भी प्रत्येक जीव को जिन प्रकृतियों की प्रतिसमय सत्ता पाई जाये, उसे ध्रुवसत्ता कहते हैं । अतएव उत्तरगुणों की प्राप्ति से पूर्व तो प्रत्येक जीव को प्रतिसमय अनन्तानुबंधि कषायों की सत्ता होती है, जिससे अनन्तानुबंधि कषायें ध्रुवसत्तावाली ही हैं । सम्यक्त्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय, तीर्थंकरनाम और आहारकद्विक ये प्रकृतियां उत्तरगुणों की प्राप्ति के पश्चात् ही सत्ता में आती हैं। इसलिये उन प्रकृतियों की अध्रुवसत्ता स्वयंसिद्ध ही है तथा शेष वैक्रियषट्क आदि प्रकृतियां उत्तरगुणों की प्राप्ति से पूर्व निरन्तर सत्ता में रहें ऐसा कोई नियम नहीं है, इसलिये उनकी भी अध्रुवसत्ता समझना चाहिए } इस प्रकार से वर्गीकरण के एक प्रकार में संकलित प्रकृतियों का सांगोपांग विवेचन जानना चाहिये । इसी तरह एक और दूसरे प्रकार से भी कर्म साहित्य में प्रकृतियों का वर्गीकरण किया गया है। दूसरे प्रकार से जिन वर्गों में प्रकृतियों का वर्गीकरण किया गया है, उन वर्गों के नामों का संकेत करने वाली अन्यकर्तृ' के दो गाथायें इस प्रकार हैंअणुदय उदओभयबंधिणी उ उभबंधउदयवोच्छेया । संतरउभय निरन्तरबंधा उदसंकमुक्ोसा || || अणुदयसंकजेट्ठा उदएणुदए ये बंधउक्कोसा । उदयाणुदयवईओ तितितिचउदुहा उ सव्वाओ || || -- शब्दार्थ - अणुदय उदओभयबंधणी - अनुदयबधिनी, उदयबंधिनी और उभयबंधिनी, उ- - और, उभबंधउदय वोच्छ्या – उभयबंधोदया व्यवच्छिद्यमाना, संतर उभयनिरन्तरबंधा -सांतर, उभय और निरन्तरबंधिनी, उदसंकमुक्कोसा - उदयसंक्रमोत्कृष्टा । अणुदय संकम जेट्ठा -- अनुदयसंत्र मोत्कृष्टा, उदएणुदए— उदय और अनु www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001900
Book TitlePanchsangraha Part 03
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy