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________________ पंचसंग्रह : ३ विशेषार्थ -संज्वलनचतुष्क और नव नोकषायों को देशघाति मानने का कारण यह है कि मिथ्यात्व और अनन्तानुबंधीचतुष्क आदि सर्वघाति बारह कषायों का क्षयोपशम होने पर जीव को जो सम्यक्त्व एवं चारित्रगुण प्राप्त होते हैं, उनके एकदेश को विपाकोदय को प्राप्त संज्वलन क्रोधादि और हास्यादि नोकषायें घात करती हैं। अर्थात् उनमें अतिचार उत्पन्न करने रूप मात्र मलिनता उत्पन्न करती हैं किन्तु सर्वथा उनका नाश नहीं करती हैं। जिससे संज्वलनचतुष्क और नोकषायें देशघाति हैं । इसी प्रकार से ज्ञान, दर्शन और दानादि लब्धि के एकदेश का घात करने वाली होने से मतिज्ञानावरण आदि प्रकृतियां देशघाति समझना चाहिए । १३४ इस प्रकार से शुभ, अशुभ और सर्वघाति - देशघाति - अघाति पद का अर्थ और प्रसंगानुसार यथायोग्य सम्बन्धित विषयों का कथन करने के पश्चात् अब क्रम प्राप्त परावर्तमान और अपरावर्तमान पद का अर्थ बतलाते हैं । परावर्तमान - अपरावर्तमान पद का अर्थ विणिवारिय जा गच्छइ बंधं उदयं च अन्नपगईए । सा हु परियत्तमाणी अणिवारेंति अपरित्ता ||४४ || शब्दार्थ - विणिवारिय - विनिवार्य रोककर, जा- -जो, गच्छइ --- प्राप्त होती है, बंढ-बंध, उदयं - उदय, च - और, अथवा, अन्नपगईए-- अन्य प्रकृतियों के, सा- वह, हु-- निश्चय ही, परियत्तमाणी- परावर्तमान, अणिवारेंति - निवारण नहीं करती, रोकती नहीं हैं, अपरियत्ता - अपरावर्तमान । गाथार्थ - निश्चय ही जो प्रकृति अन्य प्रकृतियों के बंध अथवा उदय को रोककर बंध अथवा उदय को प्राप्त होती है, उसे परावर्तमान और जो नहीं रोकती है उसे अपरावर्तमान कहते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001900
Book TitlePanchsangraha Part 03
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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