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________________ पंचसंग्रह : ३ रेशमी वस्त्र के समान, अनेक प्रकार के छिद्रों से व्याप्त, अल्प स्नेह युक्त और निर्मलता से रहित होता है। विशेषार्थ-उक्त दो गाथाओं में सर्वघाति और देशघाति रस का स्वरूप तद्योग्य उपमेय पदार्थों की उपमा द्वारा स्पष्ट किया है । सर्वप्रथम सर्वघाति रूप रस के स्वरूप को स्पष्ट करते हैं- जो रस ज्ञानादि-विषय को पूर्णतया आवृत करता है, घात करता है, समग्र रूप से स्वविषय को जानने आदि रूप कार्य को सिद्ध करने में असमर्थ करता है अर्थात् जिसके कारण ज्ञानादि गुण जानने आदि रूप कार्य सिद्ध न कर सकें, वह रस सर्वघाति कहलाता है। यहाँ रस शब्द से केवल रस नहीं परन्तु रसस्पर्धकों को ग्रहण किया है। जिसका स्पष्टीकरण आगे किया है । ___ अब इसो लक्षण को उपमा रूपक द्वारा स्पष्ट करते हैं कि तांबे के बर्तन के समान निश्छिद्र-छिद्ररहित, घी आदि के सदृश अतिशय स्निग्ध-चिकना, दाख आदि की तरह अत्यन्त पतले-महीन प्रदेशों से उपचित बना हुआ और स्फटिक अथवा अभ्रक की परत जैसा निर्मल होता है। इस प्रकार से सर्वघाति रस का स्वरूप बतलाने के पश्चात् अब देशघाति रस-देशघाति-रसस्पर्धकों के समूह का स्वरूप स्पष्ट करते हैं___ इतर देशघाति रस अपने विषय के एकदेश का घात करने वाला होने से देशघाति कहलाता है.-'देसविघाइत्तणओ इयरो' और वह अनेक प्रकार से छोटे-बड़े, सूक्ष्म-सूक्ष्मतर छिद्रों से व्याप्त है। जिसको इस प्रकार की उपमाओं द्वारा बतलाया है कि कोई बांस से निर्मित चटाई के समान अतिस्यूल सैकड़ों छिद्रों से युक्त होता है, कोई कंबल की तरह मध्यम सैकड़ों छिद्र वाला और कोई तथाप्रकार के सुकोमल रेशमी वस्त्र के अत्यन्त सूक्ष्म-बारीक महीन छिद्रों युक्त होता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001900
Book TitlePanchsangraha Part 03
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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