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पंचसंग्रह : ३
रहे दुर्भाषित भाषावर्गणा के पुद्गल क्रोध के उदय के कारण हैं, उसी प्रकार इसी तरह के और दूसरे भी पुद्गल, जो कर्म के उदय में हेतु होते हैं, उन्हें द्रव्य कहते हैं । इसी प्रकार आकाशप्रदेश रूप क्षेत्र, समयादि रूप काल, मनुष्यभव आदि रूप भव और जीव के परिणामविशेष रूप भाव, ये सभी हेतु कर्म प्रकृतियों के उदय में कारण हैं । लेकिन ये पांचों पृथक्-पृथक् उदय के हेतु नहीं हैं किन्तु 'हेउसमासेणुदओ' - पांचों का समूह - समुदाय कारण है ।
उक्त कथन का आशय यह है कि द्रव्यादि पांचों हेतुओं का समुदाय - पांच का परस्पर सहयोग मिलने पर सभी प्रकृतियों का उदय होता है । एक ही प्रकार के एक जैसे द्रव्यादि हेतु सभी कर्मप्रकृतियों के उदय में कारण रूप नहीं होते हैं, परन्तु भिन्न-भिन्न प्रकार के द्रव्यादि हेतु कारण होते हैं । कोई एक द्रव्यादि सामग्री किसी प्रकृति के उदय में हेतु होती है, और कोई सामग्री किसी के उदय में। लेकिन यह निश्चित है कि द्रव्य, क्षेत्र आदि पांचों का संयोग मिलने पर समुदाय होने पर ही प्रत्येक कर्मप्रकृति उदय में आकर अपना वेदन करायेगी । इस प्रकार से उदय हेतुओं को बतलाने के पश्चात् अब उदयाश्रयी ध्रु बाध्रुवत्व पद का अर्थ स्पष्ट करते हैं ।
ध्रुवा वोदयत्व का अर्थ
अव्वोच्छिन्नो उदओ जाणं पगईण ता धुवोदइया | वोच्छिन्नोवि हु संभवइ जाण अधुवोदया ताओ ॥ ३८ ॥
शब्दार्थ - अवच्छिन्नो-अव्यवच्छिन्न- निरन्तर, जागं - जिनका, पगईण — प्रकृतियों का, ता – वे, वोच्छिन्नोवि - विच्छिन्न हो जाने पर भी, हु- निश्चित, जाण - जिनका, अध्वोदया - अध्रुवोदया, ताओ - वे ।
नाथार्थ - जिन प्रकृतियों का अव्यवच्छिन्न- निरन्तर उदय
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उदओ - उदय,
धुवोदइया - ध्रुवोदया,
संभवइ - सम्भव हो,
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