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पंचसंग्रह : ३ रुक जाना उपशम है और उपशम से होने वाले भाव को औपशमिक भाव कहते हैं । अथवा आत्मा में कर्म की निज शक्ति का कारणवश प्रगट न होना उपशम है प्रयोजन-कारण जिसका उसे औपशमिक भाव कहते हैं।
क्षायोपशमिक भाव-उदयावलिका में प्रविष्ट कर्मांश के क्षय और उदयावलिका में अप्रविष्ट अंश के विपाकोदय को रोकने रूप उपशम के द्वारा होने वाले जीवस्वभाव को क्षायोपशमिकभाव कहते हैं।'
क्षायिक-क्षय अर्थात् आत्यन्तिक निवृत्ति यानी सर्वथा नाश होने को क्षय कहते हैं और क्षय को ही क्षायिक भाव कहते हैं । अर्थात् कर्मों के आत्यन्तिक क्षय से प्रगट होने वाला भाव क्षायिक भाव है । अथवा कर्मों के क्षय होने पर उत्पन्न होने वाला भाव क्षायिक है।
पारिणामिक भाव-परिणमित होना अर्थात् अपने मूल स्वरूप का त्याग न करके अन्य स्वरूप को प्राप्त होना परिणाम कहलाता है और परिणाम को ही पारिणामिक कहते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि जीव प्रदेशों के साथ संबद्ध होकर अपने स्वरूप को छोड़े बिना पानी और
१ उपशमो विपाकप्रदेशरूपतया द्विविधस्याप्युदयस्स विष्कम्भणं, उपशमः
प्रयोजनमस्येत्यौपशमिकः । २ आत्मनि कर्मणः स्वशक्तेः कारणवशादनुभूतिरुपशमः, उपशमः प्रयोजनमस्येत्यौपश मिकः ।
-स. सि. २/१/१४६/६ ३ उदयावलिकाप्रविष्टस्यांशस्य क्षयण, अनुदयावलिकाप्रविष्टस्योपशमेन विपाकोदयनिरोधलक्षणेन निवृत्तः क्षायोपशमिकः ।
-पंचसंग्रह मलय. टीका पृ. १२६ ४ क्षय आत्यन्तिकोच्छेदः ।
-पंचसंग्रह मलय. टीका पृ. १२६ ५ कम्माणं खए जादो ख इयो ।
-धवला ५/१,७,१०/२०६/२
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