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सर्वघाति देशघाति प्रकृतियां
केवलियनाणदंसण आवरणं बारसाइमकसाया । मिच्छत्तं निद्दाओ इय वीसं सव्वधाईओ ||१७||
आवरणं - केवलज्ञानावरण, केवलदर्शना
शब्दार्थ - केवलियनाणदंसण - आदि की बारह कषाय, मिच्छत्त - मिथ्यात्व, निहाओ - (पांच) निद्रायें, इय-यह, वीसं – बीस, सव्वधा ईयो — सर्वघाति ।
वरण, बारसाइसकषाया
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पंचसंग्रह : ३
गाथार्थ - केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, आदि की बारह कषाय, मिथ्यात्व और निद्रापंचक ये बीस प्रकृतियां सर्वघाति हैं ।
विशेषार्थ - ज्ञानावरण आदि आठ मूल कर्म घाति और अघाति के भेद से दो प्रकार के हैं । ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय ये चार कर्म घाति हैं । अतः इनकी उत्तर प्रकृतियां भी घाति मानी जायेंगी। क्योंकि ये साक्षात आत्मगुणों का घात करती हैं, उनको आच्छादित करके आत्मशक्ति का विकास नहीं होने देतीं और इनसे शेष रहे वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र ये चार कर्म और इनकी उत्तर प्रकृतियां अघाति हैं । क्योंकि ये साक्षात आत्मगुणों का तो घात नहीं करती हैं किन्तु घातिकर्मों को आत्मगुणों का घात करने में सहायक बनती हैं। घातिप्रकृतियों में भी कुछ ऐसी हैं जो आत्मा के परम रूप को प्रगट नहीं होने देती हैं और कुछ ऐसी हैं जो उसके स्वाभाविक गुणों को आंशिक रूप में घात करती हैं । परम रूप में घातक सर्वघातिनी और आंशिक रूप में घात करने वाली देशघातिनी कहलाती हैं । इन दोनों प्रकारों में से गाथा में सर्वघातिनी बीस प्रकृतियों के नाम बताये हैं— केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, अनन्तानुबंधिकषायचतुष्क, मिथ्यात्व, निद्रा, निद्रा-निद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला और स्त्यानद्ध । इनके अतिरिक्त शेष रही घातिप्रकृतियों में से मतिज्ञाना
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