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बंधव्य-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ११ ____ गाथार्थ-अपने-अपने नाम के साथ, तैजस के साथ और कार्मण के साथ जोड़ने पर वैक्रिय, आहारक और औदारिक के नौ बंधन होते हैं। युगपत् तैजस और कार्मण के जोड़ने पर तीन बंधन और इन दोनों शरीर के तीन बंधन होते हैं । इस प्रकार कुल मिलाकर बंधननामकर्म के पन्द्रह भेद हैं।
विशेषार्थ-गाथा में बंधननामकर्म के पन्द्रह भेद बनाने की प्रक्रिया का निर्देश किया है
अपने-अपने शरीरनाम के साथ, तैजस के साथ और कार्मण के साथ वैक्रिय, आहारक और औदारिक को जोड़ने पर बंधन के नौ भेद बनते हैं । जिनके नाम इस प्रकार हैं_वैक्रिय-वैक्रियबंधन, वैक्रिय-तैजसबंधन, वैक्रिय-कार्मणबंधन, आहारक-आहारकबंधन, आहारक-तैजसबंधन, आहारक-कार्मणबंधन, औदारिक औदारिकबंधन, औदारिक-तैजसबंधन, औदारिक-कार्मणबंधन।
तैजस-कार्मण को युगपत् वैक्रिय आदि तीन शरीरों के साथ जोड़ने पर बंधन के तीन भेद इस प्रकार होते हैं
वैक्रिय-तैजसकार्मणबंधन, आहारक-तैजसकार्मणबंधन, औदारिक-तैजसकार्मणबन्धन ।
तैजस कार्मण का परस्पर सम्बन्ध करने पर बन्धन के तीन भेद इस प्रकार हैं
तैजस-तैजसबंधन, तैजस-कार्मणबंधन और कार्मण-कार्मणबन्धन ।
इस प्रकार नौ, तीन, तीन को जोड़ने पर कुल मिलाकर बंधन के पन्द्रह भेद होते हैं । जिनके लक्षण क्रमशः इस प्रकार हैं
१. पूर्वग्रहीत वैक्रिय शरीर पुद्गलों के साथ गृह्यमाण वैक्रियपुद्गलों का परस्पर जो सम्बन्ध होता है, वह वैक्रिय-वैक्रियबंधन है और
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