SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १३ पंचेन्द्रिय जोव समझना चाहिये। यानि एक प्रतर के आकाशप्रदेशों को अंगुल के असंख्यातवें भाग में रहे आकाशप्रदेशों द्वारा विभाजित करने पर जो प्राप्त हो उतना अपर्याप्त द्वीन्द्रियादि प्रत्येक जोवों का प्रमाण है। ___ यद्यपि ये समस्त पर्याप्त और अपर्याप्त द्वीन्द्रियादि जीव सामान्य से तो समान प्रमाण वाले बतलाये हैं, फिर भी अंगुल का संख्यातवाँ और असंख्यातवाँ भाग छोटा, बड़ा लेने के कारण विशेषापेक्षा उनका अल्पबहुत्व इस प्रकार जानना चाहिये पर्याप्त चतुरिन्द्रिय जीव सबसे अल्प, उनसे पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय विशेषाधिक', उनसे पर्याप्त द्वीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे पर्याप्त त्रीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय असंख्यात गुण, उनसे अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अपर्याप्त त्रीन्द्रिय विशेषाधिक और उनसे अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं। इस प्रकार एकेन्द्रिय से लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक के जीवों का प्रमाण जानना चाहिये। अब शेष रहे संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के प्रमाण की प्ररूपणा करते हैं। संज्ञी जीवों का प्रमाण सन्नो चउसु गईसु पढमाए असंखसेढि नेरइया । सेढिअसंखेज्जंसो सेसासु जहोत्तरं तह य ॥१३॥ शब्दार्थ--- सन्नी-संज्ञी जीव, चउसु गईसु-चारों गतियों में, पढमाएपहले नरक में, असंखसेढि-असंख्यात सूचिश्रेणि, नेरइया-नारक, सेढिअसंखेज्जंसो-णि के असंख्यातवें भाग प्रमाण, सेसासु-शेष नरकों में, जहोत्तरं-यथा उत्तर अर्थात् उत्तरोत्तर, तह-तथारूप, य-और । गाथार्थ-संज्ञी जीव चारों गतियों में होते हैं। पहले नरक में १ एक संख्या अन्य संख्या से बड़ी होकर भी जब तक दुगुनी न हो, तब तक वह उससे विशेषाधिक कही जाती है। जैसे कि ४ या ५ की संख्या ३ से विशेषाधिक है, किन्तु ६ की संख्या ३ से दुगुनी है, विशेषाधिक नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy